श्री आशिष मुळे

☆ कविता ☆ “दिन चिट्टा रात काली” ☆ श्री आशिष मुळे ☆

सब मिलके समझे

है मजनू एक पागल

एक मजनू समझे

सब होवे पागल ।

 

मिलके सब आशिक

चिढ़ाए रुलाने मजनू

मजनू तेरी लैला कैसी

वो तो रंगसे काली ।

 

हँसे मजनू दिलसे

असली होवे आशिक

कहे अंधे अशिकानू

कैसे तुम्हे दिखाऊं ।

 

पावन किताब के पन्ने चिट्टे

उस पर लिखी सियाही काली रे

उठे जहाँ दिल की धड़कन

वहाँ  क्या गोरी क्या काली वे ।

 

दिन दौड़ता उसकी धूप चिट्टी

जलाते सूरज में छांव काली रे

है जहा छांव इतनी सुनहरी

वहाँ  क्या गोरी क्या काली वे ।

( सूफ़ी संत बाबा बुलेशाह जी का मशहूर पंजाबी कलाम “मेरा पिया घर आया ओ लालजी” पर आधारित )

© श्री आशिष मुळे

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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