श्री मच्छिंद्र बापू भिसे

(श्री मच्छिंद्र बापू भिसे जी की अभिरुचिअध्ययन-अध्यापन के साथ-साथ साहित्य वाचन, लेखन एवं समकालीन साहित्यकारों से सुसंवाद करना- कराना है। यह निश्चित ही एक उत्कृष्ट  एवं सर्वप्रिय व्याख्याता तथा एक विशिष्ट साहित्यकार की छवि है। आप विभिन्न विधाओं जैसे कविता, हाइकु, गीत, क्षणिकाएँ, आलेख, एकांकी, कहानी, समीक्षा आदि के एक सशक्त हस्ताक्षर हैं। आपकी रचनाएँ प्रसिद्ध पत्र पत्रिकाओं एवं ई-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहती हैं।  आप महाराष्ट्र राज्य हिंदी शिक्षक महामंडल द्वारा प्रकाशित ‘हिंदी अध्यापक मित्र’ त्रैमासिक पत्रिका के सहसंपादक हैं। अआज प्रस्तुत है उनकी नवसृजित कविता “वह माली बन जाऊँ मैं ! 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – काव्य कुञ्ज – # 9 ☆

☆  वह माली बन जाऊँ मैं ! 

 

पौधे सारे बच्चे हमारे

ज्ञान मंदीर जब आएँगे

कलरव होगा, क्रंदन होगा

रोना-धोना समझाएँगे

स्नेह रिश्ता ऐसा जोडूँ

प्रीत से उपजाऊँ मैं

वह माली बन जाऊँ मैं!

सदाचार की टहनी और

कोंपल उगे विनयता के

प्यारी बोली के रोए आएँगे

प्रेम के गीत भौंरे गाएँगे

आत्मविश्वास की कैंची से

ईर्ष्या-द्वेष-दंभ छाँटूँ  मैं

वह माली बन जाऊँ मैं!

एक दिन कलियाँ चटकेंगी

खुशबू चारों ओर फैलाएँगी

बगियाँ में फिर पौधे आएँगे

खुशियों के दामन भर जाएँगे

हर पौधे को आकार देकर

जीवन को साकार कर पाऊँ मैं

वह माली बन जाऊँ मैं!

 

© मच्छिंद्र बापू भिसे

भिराडाचीवाडी, डाक भुईंज, तहसील वाई, जिला सातारा – ४१५ ५१५ (महाराष्ट्र)

मोबाईल नं.:9730491952 / 9545840063

ई-मेल[email protected] , [email protected]

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