सुश्री शिल्पा मैंदर्गी

(आदरणीया सुश्री शिल्पा मैंदर्गी जी हम सबके लिए प्रेरणास्रोत हैं। आपने यह सिद्ध कर दिया है कि जीवन में किसी भी उम्र में कोई भी कठिनाई हमें हमारी सफलता के मार्ग से विचलित नहीं कर सकती। नेत्रहीन होने के पश्चात भी आपमें अद्भुत प्रतिभा है। आपने बी ए (मराठी) एवं एम ए (भरतनाट्यम) की उपाधि प्राप्त की है।)

☆ जीवन यात्रा ☆ मेरी यात्रा…. मैं अब भी लड़ रही हूँ – भाग – 16 – सुश्री शिल्पा मैंदर्गी  ☆ प्रस्तुति – सौ. विद्या श्रीनिवास बेल्लारी☆ 

(सौ विद्या श्रीनिवास बेल्लारी)

(सुश्री शिल्पा मैंदर्गी के जीवन पर आधारित साप्ताहिक स्तम्भ “माझी वाटचाल…. मी अजून लढते आहे” (“मेरी यात्रा…. मैं अब भी लड़ रही हूँ”) का ई-अभिव्यक्ति (मराठी) में सतत प्रकाशन हो रहा है। इस अविस्मरणीय एवं प्रेरणास्पद कार्य हेतु आदरणीया सौ. अंजली दिलीप गोखले जी का साधुवाद । वे सुश्री शिल्पा जी की वाणी को मराठी में लिपिबद्ध कर रहीं हैं और उसका  हिंदी भावानुवाद “मेरी यात्रा…. मैं अब भी लड़ रही हूँ”, सौ विद्या श्रीनिवास बेल्लारी जी कर रहीं हैं। इस श्रंखला को आप प्रत्येक शनिवार पढ़ सकते हैं । )  

मेरी माता-पिताजी की कृपा मुझ पर कितनी है, यह आप सब जानते ही हैं। उनके मेरे पर उपकार कितने हैं उसे शब्द मैं नहीं बता सकती । मैं भी खुद को भाग्यशाली समझती हूँ, मुझे ऐसे माता-पिता मिले है।

मेरा जन्म होने के बाद दो ही महीने में मेरे मुंह पर मुस्कान की प्रतिक्रिया न आने के कारण मां के मन में चिंता की लकीर उठ गई।  उनको शक भी होने लगा और उन्हें कुछ अलग सा लग रहा था। उस वक्त दादी ने अच्छी तरह से जान लिया कि मुझमे आंखों की कुछ तकलीफ है। उनकी समझ में सब आ गया। दादी के कहने के बाद डॉक्टर की सलाह से मुझ पर इलाज शुरू हो गया। घर में मेरी बहुत देखभाल करने लगे।

मैं जैसे-जैसे बड़ी होने लगी, तब से माता-पिता जी को मालूम पड़ गया कि मैं कभी भी देख नहीं पाऊंगी, यही सच है। ऐसा नहीं सोच कर वह बताते थे मैं दृष्टिहीन हूँ, इसका अर्थ यह तो नहीं है की मैं कुछ भी नहीं कर पाऊंगी। भगवान ने उनको इतनी अच्छी बुद्धि दी थी। मुझ पर विश्वास कर तुम्हारी लड़की बुद्धि और शरीर के हर एक भाग का इस्तेमाल कर जग को जीत सकती है। मेरे माता-पिताजी ही मेरे ईश्वर है जिन्होंने कुछ कर दिखाने की हिम्मत दी और मुझे स्वावलंबन सिखाया। इसी के ही कारण में साधारण लड़की जैसी घूमने लगी। उसके साथ बुद्धि, मन, शरीर से भी तंदुरुस्त बनकर कुछ अच्छा सा करके दुनिया को दिखा दूंगी। माता-पिता जी ने मुझ में उम्मीद भर दी।

‘नृत्यांगना’ नाम से मेरी पहचान होने के बाद सभी जगह से मुझे कार्यक्रम का बुलावा आता था। ड्रेस अप करना, हेयर स्टाईल करना, अच्छा सा मेकअप करना, अच्छे से अलंकार पहनना, इतना ही नहीं मेरी मम्मी ब्यूटीशियन से भी अच्छा मेकअप करने लगी। बाहर से ब्यूटीशियन लाने की जरूरत नहीं पड़ी। आज तक हमारी यही रूटीन चल रही है।

जैसे मम्मी ने साथ दिया, वैसे ही पाठशाला की पढ़ाई में, नृत्य कला में मेरे पिताजी ने मुझे पूरा सहयोग दिया। मेरी पढ़ाई पर आंखों में तेल डाले जैसा ध्यान रखा। मुझे एक बात की याद अभी भी आती है। पिताजी की पाठशाला दोपहर १२ बजे से ५.३० तक थी। मेहनत से काम करना पड़ता था। पाठशाला में इंस्पेक्शन चालू था। मेरा नृत्य का क्लास ५ से ६ इस वक्त था। बीच का समय लेकर पापा मुझे क्लास छोड़ने आ गए। उस वक्त ही साहब को फाइल हाजिर करने का वक्त था, बहुत चिंता का काम था।

इसी तरह समाज के अन्य दिव्यांग लड़कों के माता-पिता जी के सामने मेरी मम्मी-पापाजी ने अच्छा आदर्श बना दिया। यही असलियत है। मुझ में चेतना भर दी। इसमें प्रशंसा की बात नहीं है फिर भी नामुमकिन नहीं है।

 

प्रस्तुति – सौ विद्या श्रीनिवास बेल्लारी, पुणे 

मो ७०२८०२००३१

संपर्क – सुश्री शिल्पा मैंदर्गी,  दूरभाष ०२३३ २२२५२७५

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

image_print
5 1 vote
Article Rating

Please share your Post !

Shares
Subscribe
Notify of
guest

0 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments