श्री अजीत सिंह
(हमारे आग्रह पर श्री अजीत सिंह जी (पूर्व समाचार निदेशक, दूरदर्शन) हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए विचारणीय आलेख, वार्ताएं, संस्मरण साझा करते रहते हैं। इसके लिए हम उनके हृदय से आभारी हैं। आज प्रस्तुत है अविस्मरणीय मित्रता की मिसाल ‘यादों के झरोखे से… दास्तां दो पंजाबी दोस्तों की …’। हम आपसे आपके अनुभवी कलम से ऐसे ही आलेख समय समय पर साझा करते रहेंगे।)
☆ जीवन यात्रा ☆ यादों के झरोखे से… दास्तां दो पंजाबी दोस्तों की … ☆
गुरमीत ने कश्मीर सिंह को मौत के मुंह से बचा लिया…….
गुरमीत चंद भारद्वाज और कश्मीर सिंह पंजाब के होशियारपुर जिले के अपने पैतृक गांव नंगल खिलाड़ियां में बचपन में ही दोस्त बन गए थे। फुटबॉल के खेल ने उनकी दोस्ती को और मजबूत किया पर स्कूल की पढ़ाई के बाद उनके रास्ते अलग-अलग हो गए।
कश्मीर सिंह पहले भारतीय सेना में भर्ती हुए और चार साल बाद नौकरी छोड़ पंजाब पुलिस में शामिल हो गए। और फिर 1973 में गायब हो गए ।
कई साल बाद, पता चला कि वह पाकिस्तान की जेल में बंद था और भारतीय जासूस होने के लिए दी गई अपनी मौत की सजा का इंतज़ार कर रहा था।
गुरमीत भारद्वाज ने बी ए,एम ए करने के बाद यू पी एस सी की प्रतियोगिता पास की और वर्ष 1969 में भारतीय सूचना सेवा में आ गए । दिल्ली और शिमला में सूचना और प्रसारण मंत्रालय के विभिन्न विभागों में वरिष्ठ पदों पर काम करते हुए, वे 2006 में ऑल इंडिया रेडियो चंडीगढ़ में समाचार निदेशक के पद से सेवानिवृत्त हुए ।
गुरमीत जब भी अपने गांव जाते तो वे अपने गुमशुदा दोस्त कश्मीर सिंह की पत्नी परमजीत कौर से भी मिलते। वह कहती, अब तुम बड़े अफसर बन गए हो, कश्मीर सिंह की रिहाई के लिए भी कुछ करो।
गुरमीत ने कश्मीर सिंह की रिहाई के लिए कई पत्र विदेश मंत्रालय को लिखे लेकिन कुछ भी होते नहीं लग रहा था ।
(1 -2. कश्मीर सिंह 50 वर्ष पहले और अब 3. गुरमीत चंद भारद्वाज)
और फिर, गुरमीत को सार्क शिखर सम्मेलन के लिए 2004 में भारतीय प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की पाकिस्तान यात्रा को कवर करने के लिए ऑल इंडिया रेडियो द्वारा इस्लामाबाद भेजा गया। वह पाकिस्तान के राष्ट्रपति जनरल परवेज मुशर्रफ की प्रेस कॉन्फ्रेंस को कवर कर रहे थे, जब उसने अपने दोस्त कश्मीर सिंह के लिए कुछ करने का एक मौका देखा । उन्होंने जनरल से पूछा कि पाकिस्तान उन भारतीय कैदियों को क्यों नहीं रिहा कर रहा है जिन्होंने अपने कारावास का कार्यकाल पूरा कर लिया था । जनरल ने ऐसे किसी भी कैदी के पाकिस्तानी जेल में होने से इनकार किया लेकिन गुरमीत कागज के एक टुकड़े पर विवरण के साथ तैयार थे। कश्मीर सिंह की पत्नी परमजीत कौर की तरफ से लिखी गई एक दरखास्त उन्होंने पाकिस्तान के विदेश मंत्री कसूरी को थमा दी। कसूरी ने वादा किया कि इस मामले में वे शीघ्र उचित करवाई करेंगे।
इस बीच गुरमीत ने पाकिस्तान के एक और मंत्री अंसार बर्नी से दोस्ती भी कर ली जो मानव अधिकारों के मामलों में विशेष रुचि रखते थे।
गुरमीत 2006 में रिटायर हो गए पर अपने दोस्त कश्मीर सिंह को पाकिस्तान से बाहर लाने के लिए लगातार प्रयास करते रहे । करीब 35 साल तक पाकिस्तान की नौ जेलों में रहे कश्मीर सिंह आखिरकार 2008 में रिहा हो कर भारत आ गए। यह कश्मीर सिंह के लिए एक नया जीवन था और उनके करीबी दोस्त गुरमीत चंद के लिए एक बड़ी संतुष्टि थी।
पंजाब सरकार और कुछ व्यक्तियों ने कश्मीर सिंह को कुछ वित्तीय मदद दी। पंजाब के मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल ने 10 हज़ार रूपये महीना की पेंशन लगा दी। कश्मीर सिंह की पत्नी को महालपुर कस्बे में एक आवासीय प्लॉट दिया गया। उनके बेटे को शिक्षा विभाग में क्लर्क की नौकरी दी गई।
कश्मीर सिंह की उम्र 80 साल से अधिक है और वह अपने पैतृक गांव नंगल खिलाड़ियां में रहते हैं । गुरमीत चंडीगढ़ में बस गए हैं, लेकिन अक्सर अपने गांव जाते हैं । वे पिछले 41 वर्षों से जूनियर और सीनियर स्तर के फुटबॉल टूर्नामेंट का आयोजन कर रहे हैं। उन्होंने गांव के विदेशों में जा बसे अपने दोस्तों की आर्थिक मदद से गांव में फुटबॉल स्टेडियम बनवाया है ।
कश्मीर सिंह और गुरमीत भारद्वाज फुटबॉल के प्रति अपने पुराने जनून को अब गांव के युवा खिलाड़ियों में जगा रहे हैं।
© श्री अजीत सिंह
पूर्व समाचार निदेशक, दूरदर्शन
(लेखक श्री अजीत सिंह हिसार स्थित स्वतंत्र पत्रकार हैं । वे 2006 में दूरदर्शन केंद्र हिसार के समाचार निदेशक के पद से सेवानिवृत्त हुए।)
संपर्क: 9466647037
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