डॉ . प्रदीप शशांक 

 

(डॉ प्रदीप शशांक जी द्वारा रचित एक सामयिक व्यंग्य  “और लक्ष्मी जी स्वर्ग वापस हो गईं ”.)

 

☆ व्यंग्य – और लक्ष्मी जी स्वर्ग वापस हो गईं

 

लक्ष्मी जी सजधज कर जैसे ही बाहर निकलने लगीं वैसे ही भगवान विष्णु ने उन्हें टोंका–“अरे अमावस्या की अर्धरात्रि के अंधेरे में कहाँ जा रही हो इस तरह भरपूर साज श्रंगार कर?”

“ओफ़ ओ, आपको इतना भी याद नहीं कि आज मृत्यु लोक में स्थित भारत में दीपावली का त्योहार मनाया जा रहा है । करोड़ों लोग मेरा पूजन कर मेरी कृपा प्राप्त करने को बेकरार हैं । मैं अपने भक्तों के पास जा रही हूँ ।”

“यह तो ठीक है, भक्तों की पुकार सुनना भी चाहिये, किंतु तुम्हें यह नहीं मालूम कि भारत में अब ऐसी स्थिति नहीं है कि कोई महिला रात्रि में निशंक  विचरण कर सके । वहाँ पर लूट मार, बलात्कार की घटनायें बहुत बढ़ गई हैं । महिलाओं के गले से जेवर, सोने की चैन, पर्स आदि लूटने की घटनायें आम बात हो गयी हैं । नेताओं, अधिकारियों के रिश्तेदारों को भी बेख़ौफ़ लूटा जा रहा है । अतः  मेरा सुझाव है कि इस समय तुम्हारा वहाँ जाना ठीक नहीं है ।” भगवान विष्णु ने कहा ।

“अरे मुझे किस बात का डर? मैं कोई साधारण महिला थोड़े न हूँ, लक्ष्मी हूँ लक्ष्मी, और फिर वहां मेरे भक्तों की संख्या कोई कम तो है नहीं । पग पग पर मेरे भक्त हैं वहां । जब भक्तों को मालूम होगा कि मैं आ रही हूं तो लोग झपट पड़ेंगे । मेरे भक्तों का मेला लग जावेगा । अच्छा अब चलूँ, देर हो रही है भक्तगण व्याकुल हो रहे होंगे ।” लक्ष्मी जी ने समाधानकारक शब्दों में उत्तर दिया ।

“यहाँ हम भी तो आपकी प्रतीक्षा कर रहे हैं काफी देर से । हम पर भी कृपा करिये न ।” भगवान विष्णु के स्वर में शरारत थी ।

“अरे हटो भी, आप पर तो 24 घन्टे मेरी कृपा दृष्टि रहती है ।”

लक्ष्मी जी का वाहन तेजी से धरती की ओर बढ़ रहा था । चारों ओर घोर अंधकार था पर वाहन की गति में कोई अवरोध नहीं हो रहा था । उलूक महोदय निविड़ अंधकार को चीरते हुए पृथ्वी पर भारत की ओर बढ़ते जा रहे थे । गति काफी तेज थी किंतु लक्ष्मी जी सन्तुष्ट नहीं थी वे शीघ्रातिशीघ्र अपने भक्तों के पास पहुंचना चाहती थीं। उन्होंने उलूक से पूछा –” अभी कितनी देर और लगेगी ?”

“बस कुछ क्षणों की बात है देवी जी, देखिये दियों का प्रकाश दिखने लगा है ।”

लक्ष्मीजी आश्वस्त हुईं ।

अभी लक्ष्मी जी का वाहन भारत की धरती पर उतरने ही वाला था कि आग के शोले उगलता एक अग्नि बाण उनके नजदीक से निकला । लक्ष्मी जी एकाएक घबरा उठीं और उलूक से बोलीं “ये अग्निबाण जरा निकट से गुजरता तो मेरी साड़ी जल जाती । कैसे हैं यहाँ के लोग ?”

आखिर लक्ष्मी जी भी महिला ही थीं उनको भी साड़ी फोबिया था कि उसकी साड़ी मेरी साड़ी से अच्छी कैसे  वाला । अतः वे अपनी साड़ी की विशेष देखभाल करती थीं ।)

उलूक ने तत्काल अपना ज्ञान परिचय दिया – “देवीजी ये तो मेरे भी चचा हैं बुद्धि के मामले में । इनसे संभल कर व्यवहार कीजियेगा ।”

इस बीच वे भारत के एक शहर में उतर चुके थे । सारा वातावरण ज्योतिर्मय था ।चारों ओर रोशनी की जगमगाहट थी, दीपों की मालिकायें जगमगा रही थीं । घर -घर किये गये पूजन और हवन के परिणामस्वरूप सारा वातावरण सुगन्धित हो रहा था । सजी धजी महिलाएं बच्चों के साथ दीप प्रज्वलित कर मंदिरों को जा रही थीं। जगह -जगह बच्चे पटाखे फोड़ रहे थे ।

वातावरण में अजीब सा उल्लास तथा उमंग थी । लक्ष्मी जी को आत्मसंतोष हुआ, चलो भारत में अभी भी आस्था, श्रद्धा तथा विश्वास है । लक्ष्मी जी यह सब सोच ही रही थीं कि उनके निकट ही एक बम जोरदार आवाज के साथ फटा, वे हड़बड़ा गईं। कुछ ही दूर पर लड़के ताली  बजाकर हंस रहे थे । उनको लड़कों की यह हरकत अच्छी नहीं लगी, वे गुस्से में आगे बढ़ गई । उन्हें यह मालूम था कि भारत में रात्रि 10 बजे के बाद तेज आवाज वाले पटाखे फोड़ने पर प्रतिबंध है, लेकिन यहां तो लोग 10 बजे के बाद ही पटाखे फोड़ रहे हैं । नियम कानून का कोई भय ही नहीं है ।

उलूक महाशय पेड़ की डाल पर बैठ कर आराम फरमाने लगे ।

लक्ष्मी जी जैसे -जैसे आगे बढ़ती गईं वैसे-वैसे बमों-पटाखों की आवाज तेज होती गयी । भारी शोर शराबे से परेशान होकर वे शांत स्थान खोजने लगीं और अपनी खोज के दौरान वे कालोनी के बाहरी छोर पर जा पहुंचीं जहां एक बस्ती थी और वहां अपेक्षाकृत बहुत ही कम रोशनी थी तथा पटाखों का शोर भी नहीं था। उन्होंने देखा, जहां वे खड़ी हैं  उस झोपड़ी में कोई सजावट भी नहीं थी और दरवाजा भी बंद था । कदाचित जलाये गये दो -चार दिये भी बुझ चुके थे ।लक्ष्मी जी से रहा नहीं गया उन्होंने दरवाजा खटखटाया।

एक वृद्ध ने खांसते हुए दरवाजा खोला और पूछा-  “अरे कौन है भाई? इतनी रात को क्या काम है ? ” वृद्ध की जर्जर अवस्था देख लक्ष्मी जी को दया आ गई। वे बोलीं – ” बाबा, मैं लक्ष्मी हूँ …  ”

बूढ़े ने बीच में ही बात काट कर पूछा- “कौन लक्ष्मी, परसादी लाल की बिटिया ?”

” नहीं बाबा, मैं स्वर्ग की लक्ष्मी देवी हूँ जिसकी आप लोग पूजा करते हैं ।” लक्ष्मी जी ने हड़बड़ाहट में अचानक अपना परिचय दे दिया ।

बूढ़े ने लालटेन की मद्धिम रोशनी में लक्ष्मी जी को ऊपर से नीचे तक  घूरा और बोला – “स्वर्ग की लक्ष्मी का यहां क्या काम ? वहां जाओ अमीरों की कालोनी में, जहां तुम्हारी भारी पूजा होती है । हमारे यहां क्या रखा है सिर्फ गरीबी के । जाओ वहीं जाओ जहां पार्टी चल रही होगी, ताश के पत्ते  फेंटे जा रहे होंगे लाखों के दांव लग रहे होंगे, शराब छलक रही होगी । वहीं जाओ, वहीं रहते हैं तुम्हारे भक्त, हाँ तुम्हारे भक्त …” बड़बड़ाते हुए बूढे ने दरवाजा बंद कर  लिया ।

लक्ष्मी जी बूढ़े की बात सुनकर गम्भीर हो गईं । उन्हें अपनी उपेक्षा पर आश्चर्य हुआ और वे आगे बढ़ गईं ।

अभी लक्ष्मी जी कुछ ही कदम बढ़ पाई होंगी कि अचानक अंधकार में दो चाकू चमक उठे, वे सहम गईं, उनके मुख से चीख निकल गई ।

“शोर मचाने की जरूरत नहीं है, चुपचाप जितने जेवर पहने हो, निकालकर दे दो वरना खैर नहीं ।” दो लड़कों  ने चाकू उनके और नजदीक कर कहा ।

लक्ष्मी जी को विष्णुजी की वह बात याद आ गई कि भारत में लूटमार की घटनायें बहुत बढ़ गई हैं । उन्होंने साहस बटोरकर कहा -“जानते नहीँ हो हम कौन हैं, हम लक्ष्मी हैं लक्ष्मी।”

“लक्ष्मी हो पार्वती, हमें इससे कोई फर्क नहीं पड़ता । उतारो जल्दी उतारो सभी गहने। हमारे लिये तो ये गहने ही असली लक्ष्मी हैं । उतारो वरना ….” गुंडे ने चाकू की ओर इशारा किया ।

लक्ष्मी ने सोचा  किन लोगों के चंगुल में फंस गई मैं । उन्होंने चाहा कि वे इनको समझायें लेकिन अनुभव किया कि इसका कोई लाभ नहीं । अंतर्ध्यान होने में ही  उन्होंने अपनी खैर समझी और दो चार गहने उतार कर वे स्वर्ग वापस चली गईं ।

© डॉ . प्रदीप शशांक 
37/9 श्रीकृष्णपुरम इको सिटी, श्री राम इंजीनियरिंग कॉलेज के पास, कटंगी रोड, माढ़ोताल, जबलपुर ,मध्य प्रदेश – 482002
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