डॉ. मुक्ता
(डा. मुक्ता जी हरियाणा साहित्य अकादमी की पूर्व निदेशक एवं माननीय राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित/पुरस्कृत हैं। साप्ताहिक स्तम्भ “डॉ. मुक्ता का संवेदनात्मक साहित्य” के माध्यम से आप प्रत्येक शुक्रवार डॉ मुक्ता जी की उत्कृष्ट रचनाओं से रूबरू हो सकेंगे। आज प्रस्तुत है डॉ मुक्ता जी की कविता “घरौंदा ”।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – डॉ. मुक्ता का संवेदनात्मक साहित्य – # 13 ☆
☆ ईज़ाद ☆
वर्षों से गरीबी का दंश झेल रहे
माता-पिता ने विवश होकर कहा
हम नहीं कर पा रहे रोटी का जुगाड़
न ही करवा पा रहे हैं
तुम्हारी बहन का इलाज
बालक दौड़ा-दौड़ा
डाक्टर के पास गया
और उनसे किया सवाल
‘ क्या तुमने की है ऐसी दवा ईज़ाद
जो भूख पर पा सके नियंत्रण ‘
डॉक्टर साहब का माथा चकराया
आखिर उस मासूम बच्चे के ज़ेहन में
सहसा यह प्रश्न क्यों आया
वह बालक बेबाक़ बोला
‘तुमने चांद पर विजय पा ली
मंगल ग्रह पर सृष्टि रचना के स्वप्न संजोते हो
पूरी दुनिया पर आसीन होने का दम भरते हो’
ज़रा! हमारी ओर देखो…सोचो
कितने दिन हम जी पाएंगे पेट पकड़
भूख से बिलबिलाते
पेट की क्षुधा को शांत करने को प्रयासरत
शायद हम करेंगे लूटपाट,डकैती
व देंगे हत्या को अंजाम
और पहुंच जाएंगे सीखचों के पीछे
जहां सुविधा से स्वत:प्राप्त होगी
रोटी,कपड़ा और सिर छिपाने को छत
साहब! संविधान में संशोधन कराओ
सबको समानता का ह़क दिलवाओ
ताकि भूख से तड़प कर
कर्ज़ के नीचे दबकर
किसी को न करनी पड़े आत्महत्या
और देने पड़ें प्राण।
© डा. मुक्ता
माननीय राष्ट्रपति द्वारा पुरस्कृत।
पूर्व निदेशक, हरियाणा साहित्य अकादमी, #239,सेक्टर-45, गुरुग्राम-122003 ईमेल: drmukta51@gmail.com
मो• न•…8588801878