श्री संजय भारद्वाज
(श्री संजय भारद्वाज जी का साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं। हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुँचा रहे हैं। अब सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकेंगे। )
?? दृष्टिभ्रम या सत्य ??
हिरण मोहित था पानी में अपनी छवि निहारने में। ‘मैं’ का मोह इतना बढ़ा कि आसपास का भान ही नहीं रहा। सुधबुध खो बैठा हिरण।
अकस्मात दबे पाँव एक लम्बी छलांग और हिरण की गरदन, शेर के जबड़ों में थी। पानी से परछाई अदृश्य हो गई।
जाने क्या हुआ है मुझे कि हिरण की जगह मनुष्य और शेर की जगह काल के जबड़े दिखते हैं।
ऊहापोह में हूँ, मुझे दृष्टिभ्रम हुआ है या सत्य दिखने लगा है?
हमारी आँखें सत्यदर्शी हों।
© संजय भारद्वाज, पुणे
☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆ सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय ☆ संपादक– हम लोग ☆ पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी
मोबाइल– 9890122603
इन्सान भ्रमित है,उसे असलियत का आभास नहीं हो पाता