हिन्दी साहित्य – परिचर्चा ☆ आप मुझे प्रेमचंद की साहित्यिक सन्तान  कह सकते हैं: श्री कमलेश भारतीय ☆ श्री अजीत सिंह

श्री अजीत सिंह 

(ई- अभिव्यक्ति में श्री अजीत सिंह जी,  पूर्व समाचार निदेशक, दूरदर्शन का हार्दिक स्वागत है। हम  वानप्रस्थ सीनियर सिटीजन क्लब की वेब विचार गोष्ठी में “साहित्य और पत्रकारिता” विषय पर वरिष्ठ साहित्यकार आदरणीय श्री कमलेश भारतीय जी से की गई परिचर्चा को ई -अभिव्यक्ति के पाठकों के साथ साझा करने के लिए आदरणीय श्री अजीत सिंह जी के हृदय से आभारी हैं। )

☆ आप मुझे प्रेमचंद की साहित्यिक सन्तान  कह सकते हैं: कमलेश भारतीय ☆ श्री अजीत सिंह ☆ 

जाने माने कथाकार व हरियाणा ग्रंथ अकादमी के पूर्व उपाध्यक्ष श्री कमलेश भारतीय का कहना है कि साहित्यकार मुंशी प्रेमचंद के उपन्यासों व कहानियों में जिस तरह ग्रामीण जीवन व दलित वर्ग की पीड़ा का वर्णन किया गया है,  वह मुझे हूबहू अपने गांव का वर्णन लगता था ।

” इसी वर्णन ने मुझ पर एक अमिट छाप छोड़ी है और मेरी कहानियों व लघुकथाएं में भी प्रेमचंद के चरित्रों से मिलते जुलते दलित व वंचित लोगों का ज़िक्र बहुतायत से मिलता है”।

कमलेश भारतीय ने यह बात वानप्रस्थ सीनियर सिटीजन क्लब की वेब विचार गोष्ठी में “साहित्य और पत्रकारिता” विषय पर बोलते हुए कही।

“मेरे कमरे में मुंशी प्रेमचंद की फोटो देखकर कुछ लोग मुझसे पूछते थे, क्या यह आपके पिताजी की तस्वीर है?  मैं गर्वित हो कहता था आप मुझे प्रेमचंद की साहित्यिक सन्तान मान सकते हैं”।

एक रोचक किस्सा सुनाते हुए भारतीय ने कहा कि पढ़ाई में उनका मन नहीं लगता था।

“मैं स्कूल से अक्सर भाग जाता था । अध्यापकों व पिताजी से पिटाई होती थी। दादा जी कहते थे, पढ़ेगा नहीं तो भैंसें चराएगा।

आठवीं में हुआ तो दादी कहीं से ब्रह्मीबूटी लाई। सुबह सवेरे रोज़ पिलाती थी। बृहस्पतिवार को व्रत रखवाती थी। अब पता नहीं यह ब्रह्मीबूटी का कमाल था या बृहस्पतिवार के व्रत का या दादी की तपस्या और मन्नत का, कि मैं आठवीं में सेकंड डिविजन में पास हो गया। दादी ने लड्डू बांटे। मुझे भी कुछ हौसला सा मिला और मेरी पढ़ाई में रुचि बन गई। उसके बाद मैंने सभी परीक्षाएं फर्स्ट डिवीजन में पास की। अपने काॅलेज में तीनों वर्ष फर्स्ट और प्रभाकर परीक्षा में गोल्ड मेडल ।  यहीं से साहित्य में भी रुचि बनी।

कमलेश भारतीय पिछले 45 वर्षों से लिखते आ रहे हैं। उनके दस कथा संग्रह छप चुके हैं जिनमें चार लघु कथा संग्रह हैं। प्रमुख साहित्यकारों से उनके इंटरव्यू बड़े मकबूल हुए हैं। इन्हीं पर आधारित उनकी पुस्तक “यादों की धरोहर” पिछले साल अाई थी और अब उसका दूसरा संस्करण आकर भी समाप्त ।  इसी महीने उनकी नई पुस्तक “आम रास्ता नहीं है” अाई है ।

भारतीय ने चार भाषाओं इंग्लिश, हिंदी, पंजाबी व संस्कृत के साथ बी ए की और बी एड कर पंजाब के नवां शहर के  स्कूलों में 17 वर्ष अध्यापन किया। साथ में लेखन भी करते रहे और उनके लेख जालंधर के अखबारों में छपते रहे। सन् 1990 से उन्होंने स्कूल प्रिंसिपल की नौकरी छोड़ दैनिक ट्रिब्यून में पहले उपसंपादक और फिर हिसार में प्रिंसिपल संवाददाता के रूप में पत्रकारिता और साहित्य लेखन साथ साथ ही किया। उन्हे साहित्य लेखन के लिए अनेक पुरस्कार भी मिले जिनमें हरियाणा साहित्य अकादमी का देशबंधु गुप्त साहित्यिक पत्रकारिता का एक लाख रुपए का पुरस्कार तथा गैर – हिंदी राज्यों के हिंदी लेखकों के लिए केंद्र सरकार का 50 हज़ार रुपए का पुरस्कार उनकी पुस्तक “एक संवाददाता की डायरी” पर मिलना भी शामिल है।

वे तीन साल तक हरियाणा ग्रंथ अकादमी के उपाध्यक्ष के पद पर रहते हुए लालबत्ती की गाड़ी में भी चले।

एक प्रश्न के उत्तर में भारतीय ने कहा कि बेशक घटिया संवादों के लिए सोशल मीडिया बदनाम है, पर इसमें साहित्य को लोकप्रिय बनाने की भी भरपूर संभावनाएं हैं। हर भाषा का पूरा साहित्य इंटरनेट पर मौजूद है। लेखकों, खास तौर पर बड़े लेखकों, को अपने साथ युवाओं को जोड़ कर उनमें साहित्यिक रुचि विकसित करनी चाहिए। अध्यापक और माता पिता भी बच्चों को स्कूल और कॉलेज के दौरान  अच्छे साहित्य से परिचित करा सकते हैं।

” सोशल मीडिया पर डाले गए मेरे लेख को कई हज़ार लाइक और फॉरवर्ड मिल जाते हैं। जितनी संख्या में पुस्तक बिकती है उससे कई गुणा पाठक नेट पर मिल जाते हैं। लगभग हर लेखक का साहित्य नेट पर फ्री उपलब्ध है। सोशल मीडिया का उपयोग साहित्य प्रसार के लिए अच्छी तरह हो रहा है तथा इसके विस्तार की और बड़ी संभावनाएं हैं”।

रोचक साहित्य का ज़िक्र करते हुए कमलेश भारतीय ने कहा कि वे भी शुरू में स्कूल टाइम में जासूसी नॉवेल पढ़ते थे।

“मेरे स्कूल टीचर सरदार प्रीतमसिंह ने मुझे मुंशी प्रेमचंद की ओर मोड़ दिया। कॉलेज में अंग्रेज़ी के टीचर एच एल जोशी ने “ओल्ड मैन एंड द सी” नॉवेल के साथ अंग्रेज़ी साहित्य से रूबरू कराया और बस साहित्य की लगन लग गई, पढ़ने से शुरू हुई और लेखन तक पहुंच गई”।

इंटरव्यू की विधा का ज़िक्र करते हुए भारतीय ने कहा कि

वैसे तो हर पत्रकार इंटरव्यूअर होता है, पर साहित्यकार के इंटरव्यू के लिए उसके साहित्य का ज्ञान भी होना चाहिए और लेखन की साहित्यिक शैली भी आनी चाहिए,  तभी बात में गहराई आएगी। अच्छे लेखन के लिए अच्छा साहित्य पढ़ना बहुत ज़रूरी है।

पत्रकारिता के वर्तमान स्वरूप से भारतीय बड़े निराश हैं, खास तौर पर टेलीविजन पत्रकारिता से। सिर्फ सनसनी और चिल्लाना पत्रकारिता नहीं है। ऐसा व्यावसायिक और राजनैतिक दबावों के चलते हो रहा है। प्रिंट मीडिया कुछ बचा हुआ है पर वहां भी साहित्य के परिशिष्ट समाप्त प्राय हैं। कादम्बिनी और नंदन जैसी पत्रिकाएं हाल ही में बंद हो गयीं । पाठक, श्रोता व दर्शक को विवेक से काम लेते हुए मीडिया का उपयोग करना चाहिए”।

एक तरह से यह गोष्ठी एक इंटरव्यूअर का इंटरव्यू भी रही।

 

©  श्री अजीत सिंह

पूर्व समाचार निदेशक, दूरदर्शन

संपर्क: 9466647037

ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈