श्री कमलेश भारतीय
(जन्म – 17 जनवरी, 1952 ( होशियारपुर, पंजाब) शिक्षा- एम ए हिंदी, बी एड, प्रभाकर (स्वर्ण पदक)। प्रकाशन – अब तक ग्यारह पुस्तकें प्रकाशित । कथा संग्रह – 6 और लघुकथा संग्रह- 4 । ‘यादों की धरोहर’ हिंदी के विशिष्ट रचनाकारों के इंटरव्यूज का संकलन। कथा संग्रह – ‘एक संवाददाता की डायरी’ को प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से मिला पुरस्कार । हरियाणा साहित्य अकादमी से श्रेष्ठ पत्रकारिता पुरस्कार। पंजाब भाषा विभाग से कथा संग्रह- महक से ऊपर को वर्ष की सर्वोत्तम कथा कृति का पुरस्कार । हरियाणा ग्रंथ अकादमी के तीन वर्ष तक उपाध्यक्ष । दैनिक ट्रिब्यून से प्रिंसिपल रिपोर्टर के रूप में सेवानिवृत। सम्प्रति- स्वतंत्र लेखन व पत्रकारिता)
☆ पुस्तक चर्चा ☆ ‘खामोशियों की गूंज ’ – अदिति भादौरिया ☆ श्री कमलेश भारतीय ☆
कागज़ पर कलम से खुद को सींचना …..यानी अदिति भादौरिया की कविताएं – कमलेश भारतीय
अदिति भादौरिया फेसबुक पर मिलीं और पाठक मंच से भी जुड़ीं । एक पत्रिका की सहसंपादिका भी बनीं और लघुकथा में भी सक्रिय हैं । पहला पहला कविता संग्रह आया है- खामोशियों की गूंज । इच्छा भी आई फोन पर कि कुछ लिखूं , कुछ कहूं । आखिर इन खामोशियों की गूंज सुनी और यही लगा कि कवयित्री कह रही है कि कागज़ पर कलम से खुद को सींचती हैं अदिति यानी हर लेखक ।
कागज़ पर कलम से खुद को सींचती हूं मैं
अश्कों के प्रवाह को सीने में भरकर देखा है
क्योंकि खामोशी के शब्दों को मैंने
पलकों की स्याही से सोखा है ।
अदिति की कविताओं में आम लड़की की चाहें , प्यार , विरह , गृहस्थी और समाज सब आते हैं । वे कहती हैं :
मैं पाना चाहूं वह उड़ान
जो आशाओं को थामेगी।
अदिति ने पति , परिवार और बच्चों पर अपने प्रेम की कवितायें भी इसमें शामिल की हैं । कुछ भी छिपाया नहीं । तभी तो कहती हैं :
हां छिपाना चाहूं तुझसे मैं जख्म अपने
पर टूटा आइना कहे मुझे तेरा अक्स छिपाऊं कैसे ?
कोई भी लेखक समाज का ही अक्स दिखाता है । अपने आसपास का अक्स दिखाता है ।
अपनी कलम से अदिति कहती है
न डरना , न घबराना तुम
शब्दों को बुनते जाना तुम ।
खामोशियों की गूंज में गज़लें भी हैं तो दो दो चार चार पंक्तियों की छोटी छोटी कविताएं भी और गीत भी । सपने पर लिखी कविता पहचान लिखी है और पहचान यह है कि :
#आशा की किरणों को थामे
मैं राह अपनी चुनता हूं ,,,
छोटी छोटी कविताओं में से एक :
#बनना चाहती हूं एक ऐसा आसमान
जहां मैं उड़ सकूं और सुन सकूं
वो धड़कनें जो मेरे दिल में भी धड़कती हैं ।
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काश ! कोई समझ पाये
कि मौत सिर्फ चिता पर ही नही होती
बल्कि झूठी मुस्कुराहटें ओढ़ने से भी होती है ।
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हंसने के लिए मुस्कुराहटें नहीं
बल्कि नकाब की जरूरत पड़ती है
आजकल ,,,
लोग हैं चारों तरफ
फिर भी तन्हाई क्यों लगती है
क्यों भीड़ में खो जाती हूं मैं
हर पल बस अपनी ही तलाश में रहती क्यों हूं मैं ?
यह तलाश जारी रहनी चाहिए अदिति और इसकी भूमिका लिखी है लालित्य ललित ने । शुभकामनाएं । बधाई । अगले काव्य संग्रह या लघुकथा की प्रतीक्षा रहेगी ।
© श्री कमलेश भारतीय
पूर्व उपाध्यक्ष हरियाणा ग्रंथ अकादमी
संपर्क : 1034-बी, अर्बन एस्टेट-।।, हिसार-125005 (हरियाणा) मो. 94160-47075
≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈