सुश्री अंजली खेर 

(ई अभिव्यक्ति में सुप्रसिद्ध लेखिका सुश्री अंजली खेर जी का स्वागत है। आप भारतीय जीवन बीमा निगम में कार्यरत हैं। जीवन बीमा निगम की विविध पत्र पत्रिकाओं में विगत 10 वर्षो से आलेख प्रकाशित एवं पुरस्‍कृत । आकाशवाणी भोपाल से चिंतन एवं महिला सभा में आलेख प्रसारित, विगत दस वर्षो से वनिता, गृहशोभा, गृहलक्ष्‍मी, अहा जिंदगी, जागरण सखी, फेमिना आदि में लगभग 1000 से ज्‍यादा लेख/ कहानियां प्रकाशित एवं कुछ पुरस्‍कृत। बिग एफ एम से प्रसारित “हीरो ख्‍वाबों का सफ़र” कहानी प्रतियोगिता में लिखी कहानी भारत भर में द्वितीय स्‍थान पर रही। वर्तमान में ‘’यू ट्यूब’’ पर समाज उत्‍थान उद्देश्‍यपरक 12 कहानियां प्रसारित हो चुकी हैं जिन्‍हें आप “कहानियों का सफर” फेसबुक पेज पर सुन सकते हैं। आज प्रस्तुत है आपके द्वारा श्री गोपाल सिंह सिसोदिया “निसार” जी की शोधपरक पुस्तक “वह” की सारगर्भित समीक्षा।)

☆ पुस्तक चर्चा ☆ “वह” – लेखक – श्री गोपाल सिंह सिसोदिया ‘’निसार’’ जी ☆ सुश्री अंजली खेर ☆  

(श्री गोपाल सिंह सिसोदिया  ‘निसार ‘ जी एक प्रसिद्ध कवि, कहानीकार तथा अनेक पुस्तकों के रचियता हैं। इसके अतिरिक्त आपकी विशेष उपलब्धि ‘प्रणेता संस्थान’ है जिसके आप संस्थापक हैं।)

पुस्तक चर्चा

पुस्तक वह 

लेखक … श्री गोपाल सिंह सिसोदिया ‘’निसार’’

प्रकाशक .. श्वेतांशु प्रकाशन, नई दिल्ली

चर्चाकार .. सुश्री अंजली खेर, भोपाल

आदरणीय श्री गोपाल सिंह सिसोदिया ‘’निसार’’ जी द्वारा लिखी ‘’वह’’ शीर्षित  पुस्‍तक  का कवरपेज देख अनायास ही समाज के उस वर्ग के चेहरे मानस पटल पर जीवंत हो उठे,    जिन्‍हे समाज मे  केवल तिरस्‍कृत दृष्टि से ही देखा गया हो,  जिन्‍हें पग-पग पर अपमानित होकर शापित जीवन जीने को मजबूर होना पड़ा हो वह भी उस विषय पर, जिसके जिम्‍मेदार वे कतई हैं ही नहीं ।

जी हां, इन्‍हें हम किन्‍नर, हिजड़ा, मंगलमूर्ति, थर्ड जेंडर या कि अर्जुन और नागकन्‍या उलुपी के पुत्र ‘’अरावन’’ के नाम से जानते हैं ।

पाठकों का ध्यानाकर्षण करते हुए लेखक लिखते है कि बेशक यह जानते समझते हुए भी कि यह कोई संक्रामक बीमारी नहीं, ना ही बच्‍चे के इस जन्‍म के लिए माता-पिता ही जिम्‍मेदार है, बावजूद इसके इन्‍हें हमारा सभ्‍य सुसंस्‍कृत और तथाकथित रूप से शिक्षित समाज, यहां तक कि उसके परिजन भी उन्‍हें मन:पूर्वक स्‍वीकार करने को तैयार नहीं।

पुस्‍तक में लेखक “निसार जी” ने पुरूष-स्‍त्री और उभयलिंगी किन्‍नर के जन्‍म के वैज्ञानिक कारणों का सविस्‍तार उल्‍लेख किया हैं ।

परिस्थितियों के दुश्‍चक्र की उहापोह को एकलय में बांधती पुस्‍तक ’’वह’’ की कहानी लेखक तप शर्मा के बचपन में माँ, फिर पिता और अंतत: दिलोंजान से प्‍यार करने वाले दादा जी  के परलोक गमन की पीड़ा अंतस में थामने वाले नन्‍हे बेटे के जीवन के झंझावातों से शुरू होती हैं, जिसने  ताई-ताउजी के घर शारीरिक-मानसिक असह्य उत्‍पीडन सहने के बाद अंतत: बगावत कर परिचित के घर आश्रय लेकर आत्‍मनिर्भर बनने तक का सफ़र तय किया ।

कहानी आगे गति लेती हैं । घुमक्‍कड़ी प्रवृत्ति वाले लेखक तप शर्मा फतेहपुर सींकरी से वापसी के दौरान हादसे का शिकार हो जाते हैं, होश आने पर खुद को एक सहृदय किन्‍नर के आश्रय में पाते हैं, जिसकी सेवा-सुश्रुंषा से लेखक को नवजीवन मिलता है ।

हादसे के बाद से वर्तमान तक की बातें जानने के पश्‍चात लेखक तप शर्मा की सवालिया नज़रों को पुस्‍तक की मुख्‍य पात्र अंजु पढ़ लेती हैं और तप की आँखों मे तैरते सवालों के जवाब में अपने विधिलिखित दुर्भाग्‍य की पुस्‍तक के एक-एक पन्‍ने को खोलती चली जाती हैं ।

अंजु बताती हैं कि अव्‍वल तो बेटे की चाहत रखने वाले पिता पहले-पहल तीसरी बेटी होने पर बड़े आघात के चलते अनिश्चित कालीन बिजनेस टूर पर निकल पड़ते है, फिर थोड़ी बड़ी होने पर उसके किन्‍नर होने की खबर बिजली की कौंध सी ही द्रुतगति से फैलते ही समाज के साथ परिजनों से उलाहने और  उपहास ही मिलता रहा ।

अंजु  आगे कहती हैं कि किन्‍नर समाज के शामिल होने के बाद शुरू हुआ दुर्भाग्‍य की अग्निपरीक्षा जिसमें किन्‍नर समाज की प्रताड़नाओं से लबरेज़ ट्रेनिंग, चुनरी रस्‍म के बाद घर-घर वसूली के साथ समाज के जाने-माने प्रबुद्ध –ओहदेदार सम्‍मानीय लोगों की हैवानियत और वहशीपन का शिकार बनने मजबूर किये जाने की विडंबनाओं का लंबा दौर किस तरह उसके अंतस को तार-तार कर गया ।

पुस्‍तक में उल्‍लेख हैं कि भले ही सदियों पूर्व पुराणों में किन्नरों के उल्लेख मिलते हो, यद्यपि दशकों पूर्व सेना में इन्हें उच्चपद प्रदान किये जाते रहे हो, फिर भी चाहे अंजू हो या  उसपर निगरानी रखने वाली कोमल,,या फिर उसके सम्पर्क में आने वाली रविन्दर, रजिया या सुमन,,,और भी कितने ही असमंजस में जीते किन्नर,,,सभी अपने जीवन की इस भयावह आंधी के थपेड़ों से जूझते, कभी अपने तो कभी परिजनों के पेट की क्षुधा को शांत करने कितनी ही यंत्रणाएँ बिन प्रतिरोध के सहने को बाध्य है । कारण सिर्फ यहीं कि उन्‍हे सामान्‍य मानव की तरह जीने, पढ़ने और आत्‍मनिर्भर बनने का अधिकार नहीं ।

अंजु को सुनने के बाद अनायास ही लेखक तप शर्मा के दिमाग मे इस तिरस्कृत वर्ग को उनके हिस्से का अधिकार और सम्मान से जीने का  हक दिलाने एक NGO स्थापित करने का विचार कौंधा ।

स्वस्थ होने के बाद अंजू और उसकी साथी किन्नरों के साथ “हम भी मानव है” NGO की नींव रखी गयी,,जिसमे रास्तों पर भीख मांगने वाले किन्‍नरों सहित  उन किन्नरों की काउंसलिंग करना भी सुनिश्चित हुआ जो मेहनत कर पेट भरने और मान सम्‍मान से जीने की इच्‍छा रखते थे ।

हालांकि मुहिम के शुरू होते ही किन्‍नर अंजु की व्‍यक्तिगत पहल से कई किन्‍नर जुड़ते चले गये पर एक बड़े तबके के उत्थान की मंशा लेकर लेखक तप शर्मा द्वारा उठाया गया यह कदम इतना आसान भी न था क्‍योंकि इन सारी कवायदों के लिये पैसों की अत्‍यंत आवश्‍यकता थी।

सरकार से अनुदान पाने सरकारी दफ्तरो में फाइलों को आगे बढाने चपरासियों-बाबुओं की चिरौरी करना, किन्नर समुदायों की नाराज़गी जैसी कई अन्य समस्याओं से जूझते हुए अंततः किन्नरों को अपने हक  के लिए आमरण अनशन पर बैठना  पड़ा ।

किन्नरों के बढ़ते हौसलों को लगाम लगाने पुलिस बल द्वारा किये गये हमले के चलते कई किन्नरों के गम्भीर रूप से घायल हुए ।

पर अंतिम साँस तक हार न मानते हुए अपनी जान की बाजी लगा “वह”  की मुख्य पात्र “किन्नर अंजू” ने अपना  बलिदान देकर सरकार को “किन्नर समुदाय” के लिए मदद का हाथ बढाने के लिए बाध्‍य कर ही दिया ।

अंततः लेखक ‘’निसार’’ जी पुस्‍तक में लिखते है कि हक की इस लड़ाई में सबसे अग्रणी भूमिका निभाने वाली ‘’वह’’ यानि अंजु जंग में हुई जीत के आनंद और जश्न की साक्षी बनने के लिए शेष न थी ।

इस विशेष तबके के हक की ओर देश-समाज और सम्‍मानीय पाठक वर्ग का ध्‍यानाकर्षण करने हेतु  आदरणीय श्री गोपाल सिंह सिसोदिया ‘’निसार’’ जी द्वारा पुस्‍तक ‘’वह’’ के माध्‍यम से की गई पहल काबिलेतारीफ हैं, आशा ही नहीं, विश्‍वास हैं कि जीवन जीने के समानाधिकार के भागीदार किन्‍नर समाज को भी उसके हिस्‍से का अधिकार प्रदान करने की मुहिम इस पुस्‍तक के माध्‍यम से गति प्राप्‍त करेगी । ’’निसार’’ जी का अनेक अभिनंदन ।

चर्चाकार…  सुश्री अंजली खेर

भारतीय जीवन बीमा निगम शाखा क्र-2, जी टी बी कॉम्‍पलेक्‍स पंजाब बूट हाउस के उपर, रंगमहल चौराहा न्‍यू मार्केट, भोपाल 462 003 म;प्र;

9425810540 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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शकुंतला मित्तल

बहुत उत्कृष्ट उपन्यास। किन्नर विमर्श पर लिखा विविध जानकारी देता,रोचक शैली में लिखा उपन्यास अंत तक पाठक को बांधे रखने में पूर्णतया सक्षम है।
सुंदर समीक्षा के लिए अंजलि खेल जी को बधाई