श्री दीपक गिरकर

☆ पुस्तक चर्चा ☆ खामोशियों की गूँज (काव्य संग्रह) – सुश्री अदिति सिंह भदौरिया ☆ समीक्षक – श्री दीपक गिरकर ☆

पुस्तक  : खामोशियों की गूँज  (काव्य संग्रह) 

लेखिका  : अदिति सिंह भदौरिया 

प्रकाशक : पंकज बुक्स, 109-, पटपड़गंज गांव, दिल्ली -110091

आईएसबीएन : 978-81-8135-150-0

मूल्य   : 195 रूपए

☆ रूहानी प्रेम की कविताएं – श्री दीपक गिरकर ☆

खामोशियों की गूँजसुपरिचित लेखिका अदिति सिंह भदौरिया का प्रथम कविता संग्रह हैं। पत्र-पत्रिकाओं में इनके लेख, कहानियाँ, लघुकथाएँ, कविताएं और समसामयिक विषयों पर आलेख प्रकाशित होते रहे हैं। इस संग्रह में प्रेम, इश्क़,  मोहब्बत, रूमानियत को अभिव्यक्त करती कविताएं हैं। साहित्यिक विधाओं में कविता ही ऐसी विधा है जो रूहानी इल्म के सबसे ज्यादा करीब है। इस संकलन में 119 छोटी-छोटी कविताएं संकलित हैं। इस कविता संग्रह की भूमिका बहुत ही सारगर्भित रूप से वरिष्ठ साहित्यकार एवं राष्ट्रीय पुस्तक न्यास के संपादक डॉ. लालित्य ललित ने लिखी है। डॉ. लालित्य ललित ने अपनी भूमिका में लिखा है – जीवन के हर पक्ष को बड़ी मासूमियत से अदिति ने ऑब्ज़र्व किया है। इसी कारण से इनकी रचनाओं में परिवेश की मौलिकता और उसका आकर्षण बोध यहाँ देखने को मिलता है।

सुश्री अदिति सिंह भदौरिया

इस कविता संग्रह की पहली कविता अक्स ही इतनी प्रभावशाली है कि पाठक अपनी उत्सुकता रोक नहीं पाता है। सहज और निश्छल प्रेम में जीवंतता को अभिव्यक्त करती ये कविताएं पाठकों को प्रेम, मोहब्बत और मानवीय संवेदनाओं से अभिभूत कर देती हैं। अदिति सिंह रचना में डूबकर सृजन करती हैं इसी वजह से इनकी रचनाएं पाठकों से भी उसी शिद्दत से संवाद करती हैं। अक्स”, “अश्कों के प्रवाह और खामोशियाँ को उनके इस काव्य संग्रह की सबसे सशक्त कविताएं कहा जाए तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। ये कविताएं पाठकों को अंदर तक झकझोर देती है। अदिति सिंह ने अत्यंत सूक्ष्मता के साथ इन कविताओं को रचा हैं। अक्स कविता की पंक्तियाँ – तुम मुझे भूल गए तुझको भुलाऊँ कैसे? / आईनादिल से तेरा अक्स मिटाऊँ कैसे? / जिसको रखा सदा सीप में मोती की तरह, / तू बता अश्क़ वह रुख पर गिराऊँ कैसे ! इस कविता के अंत में कवयित्री लिखती हैं – हाँ छिपाना चाहूँ तुझसे मैं ज़ख्म अपने, / पर टूटा आईना कहे मुझे, तेरा अक्स छिपाऊँ कैसे? अश्कों के प्रवाह रचना में लेखिका कहती हैं – कागज़ पर क़लम से मैंने खुद को सींचा है, / अश्कों के प्रवाह को सीने में भरकर देखा है ! / पढ़ पाओगे तुम शब्दों को, / पर अहसास नहीं इनमें होंगे ! / क्योंकि ख़ामोशी के शब्दों को मैंने, / पलकों की स्याही से सोखा है ! “खामोशियाँ कविता की पंक्तियों को देखिए – खामोशियों की चीखें दूर तक फ़ैल गई, / वरना शब्दों ने तो कब का कफ़न ओढ़ लिया है !  

कवयित्री की रचनाओं में कहीं-कहीं तो भाव इतने गहन हैं कि मन ठहर सा जाता हैसन्नाटे की गूँज में खोना चाहती हूँ, / मैं शब्दों के अहसास से दूर, / जीवन को जीना चाहती हूँ ! / मैं चाहती हूँ एक क्षितिज के / छोर मिलते हुए देखना / और उस छोर तक, / जीवन की डोरी को बुनना चाहती हूँ ! / जाने कब सांझ ढले जीवन की, / इस जीवन में खुद को जीना चाहती हूँ ! / तन्हाई की कब्र पर, / एक आह का इंतज़ार है ! (सन्नाटे की गूँज) संकलन की अन्य कविताएं फसल यादों की”, “सपनों की बूँद”, “खामोशी”, “तन्हाई”, “ख़्वाब”, “सागर का सूनापन”, “क़लम के रंग”, “कारवांदिल को झकझोर कर रख देती हैं।

अदिति सिंह की कविताएं सहज, सरल और संप्रेषणीय हैं। कवयित्री की रचनाएं सीधी और सादा लफ़्ज़ों में है। कविता की भाषा और शब्दों का चयन प्रभावपूर्ण है। कवयित्री की रचनाओं में आदि से अंत तक आत्मिक संवेदनशीलता व्याप्त है। लेखिका की रचनाओं में जीवन के तमाम रंग छलछलाते नज़र आते हैं। कुछ कविताओं में भाव रूमानी हैं तो कुछ कविताओं में भाव साधारण हैं। संग्रह की कुछ कविताओं में उपमाएं आकर्षित करती है। संग्रह का शीर्षक खामोशियों की गूँजबहुत लुभावना, सटीक और सार्थक है। इश्क़ और मोहब्बत में खामोशियों की भी जुबां होती है। यहाँ खामोशियाँ हैं, ऐसे ज़ख्म हैं जो आँखों से दिखते नहीं, कसक है, यादों की टीस है, तन्हाईयाँ हैं, धड़कन है, विश्वास है, ख़्वाब है, उम्मीद है, सपने हैं, जूनून है, भीगे पलों के गहरे अहसास है। ये कविताएं इबादत की मंज़िल खड़ी करती हैं। यह कविता संग्रह इश्क, मोहब्बत के बेहद रूमानी सफर पर पाठकों को ले जाने का प्रयास करता है। काव्य प्रेमियों के लिए यह एक अच्छा कविता संग्रह है। आशा है अदिति सिंह भदौरिया के इस प्रथम काव्य संग्रह खामोशियों की गूँज का हिंदी साहित्य जगत में स्वागत होगा।

समीक्षक – श्री दीपक गिरकर

संपर्क – 28-सीवैभव नगरकनाडिया रोडइंदौर– 452016 

मोबाइल : 9425067036

मेल आईडी : [email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

image_print
0 0 votes
Article Rating

Please share your Post !

Shares
Subscribe
Notify of
guest

0 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments