श्री आशीष कुमार
( आज हम प्रस्तुत कर रहे हैं सुप्रसिद्ध युवा साहित्यकार श्री आशीष कुमार जी की एक चर्चित पुस्तक “मोहल्ला 90 का” के कुछ अंश जो निश्चित ही आपको कुछ समय के लिए ही सही अवश्य ले जायेंगे 90 के दशक में। )
☆ पुस्तक समीक्षा ☆ आत्मकथ्य – मोहल्ला 90 का ☆ श्री आशीष कुमार ☆
पुस्तक – मोहल्ला 90 ka
लेखक – श्री आशीष kumar
प्रकाशक – ईविन्स पब्लिशिंग
मूल्य – पेपरबैक – रु 100 ई – बुक – रु 60
अमेज़न लिंक >> मोहल्ला 90 का
इस संस्मरण के मुख्य शीर्षक हैं – अच्छे दिन, दुनिया बदल रही है, त्यौहारों की खुशबू, पश्चिमी उत्तर प्रदेश के गाँव की शादी, खट्टे मीठे दिन स्कूल के, खुशबू लड़कपन के प्यार की, नाम की सवारी, 2020 का जमाना, मुकाबला वापसी के लिए।
यादों के झरोखे से ” मोहल्ला 90 का” के कुछ अंश –
बचपन संभवतय हर व्यक्ति की सबसे पुरानी यादों के साथ जुड़ा हुआ होता है। उसी उम्र में बच्चा पढ़ना शुरु करता है। माता – पिता के बार बार कहने के बावजूद भी समय बे समय वो अपने दोस्तों के साथ खेलने चला जाता है। उस वक्त गर्मी, सर्दी या बरसात उसे रोक नहीं पाती।बचपन की ज्यादातर यादें उस वक्त के दोस्तों की और परिवार या आस-पड़ोस, अध्यपक आदि की बातों से भरी होती हैं जो चाह कर भी भुलाई नहीं जा सकती है उस समय घर में डाँट पड़े या मार दोस्तों के साथ खेलना कूदना ही सबसे जरूरी लगता है। इस समय की यादे काफी भावुक और गहरी होती हैं।उम्र के बढ़ने के साथ साथ सोच भी बदलनी शुरू हो जाती हैआप सबको याद है की हमारे खेलों में भी बदलाव आते रहते हैं। पहले छुपन – छुपाई होती थी, फिर लूड़ो-साँप सीढी का जमाना आता है, उसके बाद व्यापार आदि। शाम हुई नहीं कि भागे मैदान की तरफ, परीक्षा के दिनों में भी हम घंटे दो खेल ही लेते थे पर अब?सड़क के नुक्कड़ पर बैठकर गप्पें मारना तो ऐसा था की कब दिन से रात हुई, यह आभास भी नहीं होता था।क्या आप लोग भूल गए की खेलो के पीरियड भी होते थे और अगर नहीं है हफ्ते-दो हफ्ते में हर विषय के सर या मैडम से उनका एक पीरियड खेल का करवाने की ज़िद करके हम उसे खेल का करवा लेते थे। आज कल तो बड़ो को छोड़ो 3-4 साल के बच्चे भी मोबाइल में ही घुसे रहते है।
क्या आप लोग मिस नहीं करते वो बारिश की बूंदें, वो ठंडी पछवाड़े, वो सपनो से भरी कागज़ की नाव, वो मिटटी के खेल, वो डबल बैड पर एक ओर लेट कर रोल होते होते डबल बैड के दूसरे कोने तक जाना।वो बिस्कुट के ऊपर लगे काजू, बादाम निकाल कर खाना, स्कूटर पर आगे खड़े होकर या पीछे उलटे बैठ कर जाना।परीक्षा से पहले पापा का कहना, पढ़ाई मत कर लेना टी.वी. हीदेखते रहना, याद आया सामने वाली गली में और हमारी इसी छत पर घंटो क्रिकेट खेलना, लुड्डो, सांप- सीडी, कैरम, लंगड़ी टाँग, खो खो और पता नहीं क्या क्या?
समय लगातार बदलता रहता है वक्त की रफ्तार में दौड़ते दौड़ते कब पैसे की ज़रूरत महसूस होने लगी इसकाअंदाजा आपको भी महँगी महँगी कारो और लोगो की लाइफस्टाइल को देखकर ही लगा होगा ना? आप में से बहुत सारे लोगो को नौकरी के लिए घर छोड़कर दूसरे शहरो में जाना पड़ा, शहर अनजान सा था। एक छोटा सा कमरा जो सामान से ही भरा रहता था। शुरू-शुरू में होटल का खाना अच्छा लगता होगा लेकिन आज बताओ घर के खाने का ही मन करता है ना।जिन कामो को जब मम्मी या पापा हमारे लिए कर देते थे तो वो बड़े आसान से लगते थे लेकिन अब जब खुद करने पड़ते है तो वो बड़े मुश्किल से लगते हैना? मेहनत से काम करने के बावजूद ऑफिस में बॉस की डांटमन को कचोटती है ना? हमने घर में कभी किसी की सुनी नही थी लेकिन पैसों की चाह ने यहाँ सब कुछ चुपचाप सहन करना सीखा दिया। आज लगता है ना की घर के जिस चैन को हम दुखो का दौर समझते थे असल मे वो ही हमारा गोल्डन टाइम था । जिसको शायद पैसा कभी भर नही सकता।
मौसम भी वही है हम भी वही हैं मगर पहले जैसी, अब बात नहीं है वही बारिश है वही बारिश की बूंदे हैं मगर अब उनमे हमारे जज्बात नहीं है, गलियां भी वही है यार भी वही हैं मगर पहले जैसे,अब मिलते नहीं हैं क्योकि आज वो भी बिजी है और हम भी।
चलो आप लोगो को स्कूल के उस दौर में ले चलता हूँ और अध्यापको द्वारा दिए गए कुछ ज्ञान याद करवाता हूँ:
- मुझे क्लास में पिन ड्रॉप साइलेन्स चाहिये(मुझे आज तक वो पिन नहीं मिली)
- बहुत हँसी आ रही है हमें भी तो बताओ थोड़ा हम भी हँस लें (अरे हाँ पहले सच्ची हँसी भी तो हुआ करती थी)
- क्या बेटा, बाहर देखने में ज़्यादा आनन्द आ रहा हो तो बाहर ही निकल जाओ (अब तो अंदर का एकांत पसंद है बस)
- आज आप लोगों का सरप्राइज़ टेस्ट है (काश आज फिर कोई सेSurprise टेस्ट ले ले)
- ज़रा सा बाहर जाते ही क्लास को सब्जी मंडी बना देते हो, सब खड़े हो जाओ (टीचर द्वारा कुर्सी पर हाथ ऊपर करके खड़े होने की सज़ा याद है ना?)
- किताब कहाँ है ? घर पर दूध दे रही है क्या? (अब तो किताब भी मोबाइल में घुस गयी)
- माँ बाप का खूब नाम रोशन कर रहे हो बेटा, क्यों उनकी मेहनत की गाढ़ी कमाई बर्बाद कर रहे हो ? (नाम ही माँ-बाप का दिया हुआ है)
- खाना खाना भूले थे ? होमवर्क कैसे भूल गये ? (अब तो होम में वर्क ही होता है बस शरारत कहाँ?)
- हाँ तुमसे ही पूछ रही हूँ खड़े हो जाओ, इधर उधर क्या देख रहे हो, Answer दो (मेरे पास आज भी Answer नहीं है)
- ज़ोर से पढ़ो यहाँ तक आवाज़ आनी चाहिये, मस्ती में तो बहुत गला फाड़ते हो, पढ़ने में क्या हो जाता है ? (पूर्ण मौन)
- कल से तुम दोनों को अलग अलग बैठना है (दोस्त अब कुछ ज्यादा ही अलग अलग हो गए है)
- अगर वह कुँए में कूदेगा तो क्या तुम भी कूद जाओगे ?( मन करता है कि अब तो कुँए में ही कूद जाये)
- इतने सालों में कभी इतनी ख़राब क्लास और इतने ढीठ बच्चे नहीं देखे (ढीठ तो अब हो गए है)
स्कूल में हम सबकी टीचरों द्वारा सबके सामने भी पिटाई होती थी पर तब भी हमारा Ego हमें कभी परेशान नही करता था हम बच्चें शायद तब तक जानते नही थे कि Ego होता क्या है। क्योकि पिटाई के एक घंटे बाद ही हम फिर से हंसते हुए कोई और शैतानी करने लगते।
पढ़ाई फिर नौकरी के सिलसिलें में हम शहर-शहर में मरे फिरते है पर सच बताओ हमारे बचपन की ये गालियाँ, वो स्कूल का जीवन, तीज- त्यौहारो की मस्ती हमारा आज भी पीछा करते हैं ना और उन्हें ही याद करके अब हम सब शायद सबसे ज्यादा खुश होते है।याद है वो घर में मूंगफली भी जितने भाई-बहन है उतने हिस्सों में बाटी जाती थी और हमेशा लगता था की मेरे हिस्से में ही एक-दो मूंगफली कम है।ये नया जमाना हमे कहाँ ले आया?, नल की टोटी का काई वाला पानी पी के जो प्यास बूझती थी उसका कोई जवाब नहीं,अब तो RO का शुद्ध पानी पीकर भी बरसो से प्यासे ही है।आप सब कभी एक मिनट भी एक दूसरे के बगैर नहीं रह पाते थे कभी स्कूल में साथ तो कभी स्कूल के बाद शाम ढलने तक रोज मिलते थे फिर भी रोज नयी और ज्यादा खुशी। और आप लोग आज काफी समय बाद मिल रहे है कुछ को तो शायद बीस सालो से भी ज्यादा हो गए, क्या मुझे बातयेंगे जब इतने समय बाद आप लोग आज यहाँ पर मिले कितनो ने एक दूसरे से कितनी देर बात की? एक मिनट, दो मिनट या ज्यादा से ज्यादा पांच मिनट और फिर लग गए सब अपने अपने मोबाइलो में।नाम मोबाइल है पर इस 6-7 इंच की वस्तु ने सबकी जिंदगी स्थायी बिना किसी गति के बना दी है।
याद करिये वो दिन जब हमारे पास न तो Mobile, DVD’s, PlayStation, Xboxes, PC, Internet, चैटिंग कुछ नहीं था फिर भी हम हर पल को जीते थे क्योकि तब हम दोस्तों के साथ जीते थे।पोशम्पा भाई पोशम्पा डाकूो ने क्या किया सौ रूपये की घड़ी चुराई, आज फिर कोई सौ रूपये की घडी चुरा ले जिससे समय हमेशा के लिए रुक जाये कम से कम और आगे ना बढ़े।
चलो क्यों ना फिर से बचपन में जाये, चलो क्यों ना अन्य उत्सवों की तरह बचपन भी मनाये क्यों ना हफ्ते में या महीने में या कम से कम साल में एक बार सब कुछ भूल जाये।चलो फिर से तबियत ना बिगड़ने के डर से आगे बढ़े और बारिश की बूंदो के साथ मज़े करे, कागज़ की नाव फिर से चलाये, फिर से मिट्टी में खेले, छत की ज़मीन पर एक रात फिर सो ले।आज मोबाइल पर फिर से लूडो खेलते हो ना चलो एक असली लूडो लाये और फिर से टोलिया बनाये।चलो फिर एक बार एक कक्षा की रौनक बढ़ाये, फिर से कुछ कागज के जहाज उड़ाये।अपनी अपनी कारों को पार्क ही रहने दो चलो फिर से साइकिलो से दौड़ लगायें।
एक दिन के लिए फिर से Health Un conscious हो जाओ और मीठी चाय में रस या पापे डूबा कर खाओ।क्यों ना बाजार की आइसक्रीम छोड़ कर आज फिर से घर पर आइसक्रीम जमायी जाये।पापड़ और स्नैक्स भी बहार के खाते हो, भूल गए बचपन में मम्मी के हाथो से बने पापड़ और कचरियों जो छतो पर सूखते थे और हम उनके ऊपर से कूदते थे। इस बार क्यों ना आपने हाथो से बने पापड़ मम्मी को खिलाये…………….. चलो इसी बहाने घर लौट आये।
चलो फिर से अपने कमरों में क्रिकेटरों के पोस्टर लगायें, यादो के लिए ही सही पर एक बार फिर से स्टोर में पड़े धूल लगे थैले में से कुछ ऑडियो कैसेट निकाले और उसके एक खांचे में पैंसिल फसा कर फिर से घुमा ले।क्यों ना आज अपनी कॉमिको के सारे सुपर हीरो बुला ले।कल होली पर मोहल्ले के हर घर में जाकर रंग लगाने के लिए आज ही टोलिया बना ले।मैं तो कहता हूँ इस बार अपने अपने बच्चो को भी उसमे मिला ले। 15-20 तो हम है ही, इस बार दशहरा पर क्यों ना अपने मोहल्ले में ही रामलीला का मंच लगा ले। किसी को रावण किसी को हनुमान बना ले।
© आशीष कुमार
नई दिल्ली
≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈