श्री संजय भारद्वाज
(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही गंभीर लेखन। शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं। हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )
(जिस मंच पर बतौर प्रतियोगी पारितोषिक पाया हो उसी मंच पर 24 वर्ष पश्चात उसी प्रतियोगिता के उद्घाटन का सौभाग्य और उन क्षणों को जीने के लिए श्री संजय भारद्वाज जी का हार्दिक अभिनन्दन। सादर प्रस्तुत है उनकी मनोभावनाएं ई-अभिव्यक्ति के पाठकों के लिए।)
सन 1996…, महाराष्ट्र राज्य हिंदी नाट्य प्रतियोगिता में अपने नाटक ‘एक भिखारिन की मौत’ का मंचन किया था। नाटक को विजेता नाटकों की सूची में स्थान मिला, साथ ही व्यक्तिगत रूप से अभिनय का पारितोषिक भी।
सन 2020…, 3 फरवरी को सांस्कृतिक संचालनालय, महाराष्ट्र सरकार की उसी राज्य हिंदी नाट्य प्रतियोगिता का उद्घाटन करने का सौभाग्य मिला।
विशेष आनंद हुआ यह जानकर कि इस वर्ष हिंदी के 88 नाटक इस प्रतियोगिता में सहभागी हुए हैं। अगले वर्ष यह संख्या संभवत: 100 को छू जाए।
विनम्रता से कहना चाहता हूँ कि जीवन में छोटी-बड़ी जो भी सफलताएँ मिलीं, उसके मूल में रंगमंच ही है। खून में दौड़ता रंगमंच कलाकार को जीने नहीं देता और जब तक कलाकार पूरा जी नहीं लेता, रंगमंच उसे मरने भी नहीं देता। शायद इसी अनुभव ने मुझसे लिखवाया-
न गले से उतरा
न गले में ठहरा
विष न जाने
कहाँ जा छिपा,
जीवन के साथ
मृत्यु का आभास,
मैं न नीलकंठ
बन सका, न सुकरात!
© संजय भारद्वाज, पुणे
दोपहर 3.58 बजे, 4.2.2020
☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆ सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय ☆ संपादक– हम लोग ☆ पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆
मोबाइल– 9890122603
जीवन के साथ मृत्यु का आभास-बहुत खूब।??