श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

आज  इसी अंक में प्रस्तुत है श्री संजय भरद्वाज जी की कविता  ” पानी ” का अंग्रेजी अनुवाद  “Water”  शीर्षक से ।  हम कैप्टन  प्रवीण रघुवंशी जी के ह्रदय से आभारी  हैं  जिन्होंने  इस कविता का अत्यंत सुन्दर भावानुवाद किया है। )

☆ संजय दृष्टि  –  पानी 

 

आदमी की आँख का

जब मर जाता है पानी

खतरे का निशान

पार कर जाता है।

 

पानी की तासीर है

गला तर कर देना

पानी की तदबीर है

रीते सोतों को भर देना।

 

पेड़ की खुरदरी जड़ों को

लबालब सींचना

घास को रेशमी कर

हरियाली पर रीझना।

 

ताल, टप्पे, गड्ढों में

पंछियों के लिए ठिठक जाना

बंजर माटी की देह भिगोकर

उसकी कोख हरी कर जाना।

 

रास्ते में खड़ा काँक्रीट का जंगल

सोख नहीं पाता पानी

सीमेंट, एडेसिव, बस्ती का आदमी

मिलकर रोक देते हैं पानी।

 

पानी को पहुँचना है

हर प्यास तक

पानी को बहना है

हर आस तक।

 

थोड़ा नाराज हो जाता है

उफान पर आ जाता है

रोकने के सारे निशान

समेटकर बहता चला जाता है।

 

काँक्रीट का जंगल

थरथराने लगता है

छोटे मन का आदमी

बहाव के लिए रास्ते बनाने लगता है।

 

आदमी की आँख में

जब उतर आता है

पानी खतरे के निशान से

उतर जाता है पानी।

 

©  संजय भारद्वाज

(कविता संग्रह ‘चेहरे’ से ली गई एक रचना।)

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य 0अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

[email protected]

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वीनु जमुआर

“बंजर माटी की देह भिगोकर उसकी कोख हरी कर जाना…”
सृजन का आरंभ!! अर्थपूर्ण रचना।