श्री संजय भारद्वाज
(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही गंभीर लेखन। शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं। हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)
संजय दृष्टि – अनुराग
तुम,
मेरे इर्द-गिर्द रहती हो,
सर्वदा, हर क्षण
आसपास अनुभव होती हो,
सुनो प्रिये,
किसी संकेत की आवश्यकता नहीं,
ना कभी दरवाज़ा खटखटाना,
जब मन चाहे, दौड़ी चली आना,
मुझे अनुरक्त पाओगी,
सदैव प्रतीक्षारत पाओगी,
जैसे हवा में होती है प्राणवायु,
नमी में बहता है जल,
घर्षण में बसती है आग,
ध्वनि में सिमटता है आकाश,
देह में माटी तत्व भरा होता है,
स्थूल में सूक्ष्म विचरता है,
वैसे ही हर श्वास में
नि:श्वास बनकर रहती हो तुम,
एक बात बताओ-
अपनी होकर भी,
इतनी डरी सहमी
दबे पाँव क्यों आती हो तुम?
केवल एक बार
नेह प्रकट करोगी तुम,
पर मैं बाहें फैलाकर खड़ा हूँ,
आजीवन तुम पर रीझा हूँ,
जब कभी हमारा मिलन होगा,
यह वचन रहा-
मुझ में समाकर
जी उठोगी तुम,
उस रोज़ सृष्टि में
जन्म लेगी नौवीं ऋतु…,
तुम, मुझे
सुन रही हो न मृत्यु..!
© संजय भारद्वाज
प्रातः 7:35 बजे, 24 अगस्त 2024
अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆ सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय, एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय, न्यू आर्ट्स, कॉमर्स एंड साइंस कॉलेज (स्वायत्त) अहमदनगर ☆ संपादक– हम लोग ☆ पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆
संजयउवाच@डाटामेल.भारत
☆ आपदां अपहर्तारं ☆
27 अगस्त से 9 दिवसीय श्रीकृष्ण साधना होगी। इस साधना में ध्यान एवं आत्म-परिष्कार भी साथ साथ चलेंगे।
इस साधना का मंत्र है ॐ कृष्णाय नमः
अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं।
≈ संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈