श्री संजय भारद्वाज
(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही गंभीर लेखन। शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं। हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं।)
संजय दृष्टि – पहचान
(कवितासंग्रह ‘चेहरे’ से।)
अव्यवस्थित से पड़े
कुछ लिखे, कुछ अधलिखे काग़ज़,
मसि के स्पर्श की प्रतीक्षा में रखे
सुव्यवस्थित कुछ अन्य काग़ज़,
एक ओर रखी खुली ऐनक,
धाराप्रवाह चलती कलम,
अभिव्यक्त होती अनुभूति,
भावनाओं का मानस स्पंदन,
हर पंक्ति पर आत्ममुग्ध अपेक्षा,
अपेक्षित अपनी ही प्रशंसा का गान,
क्या काफ़ी है इतनी
मेरे लेखक होने की पहचान…?
*
खचाखच भरा सभागार,
प्रशंसा में उद्धृत साहित्यकार,
शब्दों से मेरी क्रीड़ा,
तालियों की अनुगूँज अपार,
औपचारिक पुष्पगुच्छों के रेले,
संग तस्वीर खींचाने की रेलमपेलें,
कृत्रिम मुस्कानों का प्रत्युत्तर,
भोथरी ज़मीन पर खड़ा मेरा अपंग अभिमान
क्या काफ़ी है इतनी
मेरे लेखक होने की पहचान…?
*
कुछ सम्मानों की चिप्पियाँ चिपकाए,
आलोचनाओं का प्रत्युत्तर
यथासमय देने की इच्छा मन में दबाए,
पराये शब्दों में मीन-मेख की तलाश,
अपने शब्द सामर्थ्य पर खुद इतराए,
लब्ध-प्रतिष्ठितों में स्थापित होने की सुप्त चाह,
नवोेदितों के बीच कराते अपनी जय-जयकार,
क्या काफ़ी है इतनी
मेरे लेखक होने की पहचान…?
*
सर्द ठंड में ठिठुरती बच्ची को
सम्मान में मिली शॉल ओढ़ा देना,
अपनी रचनाओं से बुनी चादर पर
फुटपाथ के असहाय परिवार को सुला देना,
राह चलती एक आंधी माई को
सड़क पार करा देना,
भीख माँंगते नन्हें के गालों पर
अपने गीतों की हँंसी थिरका देना,
*
पिया की बाट जोहती को
गुनगुनाने के लिए अपने गीत देना,
बच्चों के ठुकराने से आहत
वृद्ध को अपने शब्दोेंं की प्रीत देना,
परदेस गए बेटे का
घर चिठ्ठी लिखने,
मेरे ही शब्द टटोलना,
विदा होती बेटी को
दिलासा देने,
माँ का मेरे ही लोकगीत ओढ़ना,
*
पीड़ित महिला के समर्थन में
नया गीत रच देना,
नफ़रत की फसलों में प्रेम का
नया बीज रोप देना,
उजाले के निवासियों के लिए
प्रकाश बाँंटने की
अनिवार्य रीत लिख देना,
अंधेरेे के रहवासियों के लिए
नया एक दीप रच देना,
*
उपेक्षितों में शब्दों से
जागरूकता का मंत्र फूँक देना,
निर्दोषों के पक्ष में
कलम से युद्ध का
शंख फूँक देना,
*
दंभ से दूरी, विनय का ज्ञान,
समझौतों को नकार
सच्चे आँसुओं की पहचान,
आहत को राहत,
दुखी के दुख का भान,
झूठ के खिलाफ सच्चाई का मान,
यह है-
मेरे लेखक होने की पहचान,
मेरी वेदना, मेरी संवेदना को
सामर्थ्य देनेवाली
माँ शारदा, तुम्हें शतश: प्रणाम।
© संजय भारद्वाज
अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆ सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय, एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय, न्यू आर्ट्स, कॉमर्स एंड साइंस कॉलेज (स्वायत्त) अहमदनगर ☆ संपादक– हम लोग ☆ पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆
संजयउवाच@डाटामेल.भारत
☆ आपदां अपहर्तारं ☆
गणेश चतुर्थी तदनुसार आज शनिवार 7 सितम्बर को आरम्भ होकर अनंत चतुर्दशी तदनुसार मंगलवार 17 सितम्बर 2024 तक चलेगी।
इस साधना का मंत्र है- ॐ गं गणपतये नमः।
साधक इस मंत्र के मालाजप के साथ ही कम से कम एक पाठ अथर्वशीर्ष का भी करने का प्रयास करें। जिन साधकों को अथर्वशीर्ष का पाठ कठिन लगे, वे कम से कम श्रवण अवश्य करें।
अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं।
≈ संपादक – हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈