श्री संजय भारद्वाज
(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही गंभीर लेखन। शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं। हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )
☆ संजय दृष्टि – कोरोना वायरस और हम- 2☆
1) वुहान.., मानो शब्द ही संक्रमित हो चला है। कोई उच्चारण भी नहीं करना चाहता। चीन के हुबेई प्रांत की राजधानी इस शहर से शुरू हुआ कोरोनावायरस और कोविड-19 का कहर। इसी शहर में फँसे हैं कुछ भारतीय नागरिक, विशेषकर छात्र। भारत सरकार लेती है एक दायित्वपूर्ण और साहसिक निर्णय। एयर इंडिया के पायलट, को-पायलट, क्रू ने बांधा मास्क, आवश्यक दवाइयाँ लिए साथ चली डॉक्टरों की टीम। ग्रामीण मेले में ‘मौत का कुआँ’ खेल दिखाया जाता है। ज़रा-सा संतुलन बिगड़ा कि मौत ने निगला। मौत के कुएँ में उतरा विमान, भारतीयों को साथ लिया और अपने देश के लिए भारी उड़ान।
2) इटली हो, ईरान, फिलीपींस, स्पेन या दुनिया का कोई भी देश, कर्तव्य, राष्ट्रनिष्ठा और साहस की यह गाथा हर जगह लागू है। देश या देश से बाहर, हमारा एक भी नागरिक संकट में है तो हमारी सरकार उसे उबारने के लिए तत्पर खड़ी है।
3) सरकारी अस्पतालों में भीड़ है। डॉक्टर, नर्सिंग स्टाफ, सफाई कर्मचारी, कपड़े धोने वाला सब अपनी ड्यूटी पर हैं। अपने प्राण की चिंता न कर हरेक मुस्तैदी से डटा है मरीज़ों की सुश्रुषा में।
4) कोविड-19 का संक्रमण बढ़ रहा है। सरकार ने शहरों को सैनिटाइज़ करने का निर्णय किया है। सफाई कर्मचारी अपने कर्तव्य का निर्वाह करते हुए शहर का कोना-कोना सैनिटाइज कर रहे हैं।
5) रेल चल रही है, ड्राइवर अपनी ड्यूटी पर है। बस चल रही है, कंडक्टर और ड्राइवर ऑनड्यूटी हैं।
6) इस वैश्विक संकट का विश्व की अर्थव्यवस्था पर दुष्परिणाम होगा। लेकिन बैंक बंद कर दिए तो व्यवस्था चरमरा जाएगी। अत: समर्पण से अपना काम कर रहे हैं, बैंककर्मी।
7) भय, अफवाहों को जन्म देता है। ऐसी स्थिति में अपने प्राणों को संकट में डाल कर यथासंभव ऑनग्राउंड रिपोर्टिंग कर रहे हैं प्रसार माध्यमों के कर्मी।
8) मनुष्य ‘सोशल एनिमल’ है। हम ‘फिजिकल डिस्टेंसिंग मोड’ पर हैं लेकिन सोशल मीडिया ने हमें सोशल बनाए रखा है। इंटरनेट और टेलीफोन विभाग के कर्मी चौबीस घंटे मुस्तैद हैं।
9) व्यापार का लाभ नहीं दायित्व का बोध है जो मेडिकल स्टोर्स,पंसारी, फल, सब्जी, दूध की दुकान, पेट्रोल, सीएनजी, डीजल के पम्प पर मालिक और कर्मचारी को निरंतर कार्यरत रखे हुए है।
10) ‘होम क्वारंटीन’, ‘आइसोलेशन’, ‘वर्क फ्रॉम होम’ अनेक विकल्पों का भार एक साथ ढो रही है महिलाएँ। परिवार के छोटे-बड़े हर एक के लिए दिन-रात जुटी है महिलाएँ।
11) ये कुछ उदाहरण भर हैं। अनेक ऐसे क्षेत्र हैं जिनके कर्मियों के बल पर देश चल रहा है और हम सबका अस्तित्व टिका है। इन सब के साथ खड़ी दिखती है भारत सरकार और राज्य सरकारों की सक्रियता, केंद्रीय स्वास्थ्यमंत्री और स्वास्थ्य मंत्रालय की चेतना।
महाभारत में योगेश्वर श्रीकृष्ण ने अर्जुन को अपना विराट रूप दिखाया था। असंख्य राष्ट्रसेवकों के रूप में योगेश्वर, कलयुग के इस महाभारत में साक्षात दृष्टिगोचर हो रहे हैं।
आज शाम 5:00 बजे अपने घर की बालकनी में आकर थाली, ताली, घंटानाद, शंखनाद से इस विराट रूप को नमन अवश्य कीजिएगा। साथ ही नमन कीजिएगा उस विलक्षण सेनापति को भी जिसके नेतृत्व में देश कोरोना से अभूतपूर्व युद्ध लड़ रहा है।….जय हिंद!
© संजय भारद्वाज, पुणे
22.3 2020, 13.21 बजे
☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆ सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय ☆ संपादक– हम लोग ☆ पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆
मोबाइल– 9890122603