श्री संजय भारद्वाज
(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही गंभीर लेखन। शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं। हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )
☆ संजय दृष्टि – अक्षय ☆
पत्थर से टकराता प्रवाह
उकेर देता है
सदियों की गाथाएँ
पहाड़ों के वक्ष पर,
बदलते काल और
ऋतुचक्र के संस्मरण
लिखे होते हैं
चट्टानों की छाती पर,
और तो और
जीवाश्म होते हैं
उत्क्रांति का एनसाइक्लोपीडिया…,
और तुम कहते हो
लिखने के लिए
शब्द नहीं मिलते!
घर पर रहना है, कोविड-19 को हराना है।
© संजय भारद्वाज, पुणे
प्रातः 7:11 बजे, 26.3.2020
☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆ सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय ☆ संपादक– हम लोग ☆ पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆
अक्षय शीर्षक अक्षय शब्द संपदा लिए हुए – जीवाश्म होते हैं उत्क्रांति का एनसाइक्लोपीडिया
रचनाकार का विश्वास है कि शब्द संपदा किसी भी व्यक्ति को अकेलापन महसूस नहीं होने देती , शब् तो ब्रह्म है फिर क्या डरना ?
घर पर रहना है , कोविड -19 को हराना है – तथास्तु
वाह!करता ही सुन्दर अभिव्यक्ति है।सच है जीवाश्म ही तो उत्क्रांति का एनसायक्लोपीडिया है।