श्री संजय भारद्वाज
(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही गंभीर लेखन। शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं। हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )
☆ संजय दृष्टि – मानसपटल ☆
पहले आती थीं चिड़ियाँ,
फिर कबूतरों ने डेरा जमाया,
अब कौवों का जमावड़ा है..,
बदलते दृश्यों को मन के
पटल पर उतार रहा हूँ मैं
अपनी बालकनी में खड़ा
जीवन निहार रहा हूँ मैं..!
घर पर रहें, स्वस्थ रहें।
© संजय भारद्वाज, पुणे
प्रात: 8:37 बजे, 1अप्रैल 2020
☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆ सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय ☆ संपादक– हम लोग ☆ पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆
जीवन को निहारने का यह शायद एक मौका़ है, इसमें हुए परिवर्तन आज स्पष्ट दिखाई दे रहे हैं।समय बदलते देर नहीं लगेगी। सकारात्मक रहें ।शायद ये कौओं का जमावड़ा भविष्य दिखा रहे हैं।
अद्भुत – रचनाकार अपनी बालकनी में खड़ा जीवन निहार रहा है -अपने मानस -पटल पर बदलाव रेखांकित कर रहा है – धन्य है रचनाकार जिसका मन- मस्तिष्क आज भी सक्रिय है – प्रत्येक पल का सदुपयोग कर रहा है – फिर घर की बालकनी हो या मंच ….
बदलते परिवेश के जीवन को निहार रहे है।??