श्री संजय भारद्वाज
(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही गंभीर लेखन। शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं। हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )
☆ संजय दृष्टि – जलाएँ एक दीप ☆
संजय दृष्टि के अंतर्गत आज की रचना प्रस्तुत करने के पूर्व हम आप सबका आभार प्रकट करना चाहेंगे। इस सन्दर्भ में श्री संजय भरद्वाज जी की दीप प्रज्वलित करने हेतु आह्वान स्वरूप कविता को कृपया पुनः पढ़ें एवं उसमे निहित भावार्थ को आत्मसात करने का प्रयास करें।
जलाएँ एक दीप
उस दरवाजे, अंधविश्वास
जिसका प्रहरी हो,
एक दीप उस गली के आगे
भूख जहाँ आकर ठहरी हो,
एक दीप उस चबूतरे पर
भारतीयता का जिस पर बसेरा हो,
एक दीप उस कँगूरे पर
फहराता जहाँ तिरंगा मेरा हो,
एक दीप शहीदों की समाधि पर,
एक भीतर भीतर घुमड़ती
परिवर्तन की आँधी पर,
एक दीप आपदा के विरुद्ध जलाएँ,
एकता की शक्ति से
नभ-थल आलोकित हो जाएँ।
(कल 5 अप्रैल 2020 रात 9 बजे, 9 मिनट तक आपने अपने दरवाजे/बालकनी में दीप / मोमबत्ती जलाकर या मोबाइल की फ्लैश लाइट/ टॉर्च ऑन करके भारत की सामूहिकता का परिचय दिया ।इस जज्बे के लिए आप सबको सलाम। )
☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆ सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय ☆ संपादक– हम लोग ☆ पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆
मोबाइल– 9890122603