श्री संजय भारद्वाज
(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही गंभीर लेखन। शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं। हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )
☆ संजय दृष्टि – अजेय ☆
समुद्री लहरों का
कंपन-प्रकंपन,
प्रसरण-आकुंचन,
मशीनों से
मापनेवालों की
आज हार हुई,
मेरे मन में
उमड़ती-घुमड़ती लहरें,
उनकी पकड़
और परख से दूर
सिद्ध हुईं..!
© संजय भारद्वाज, पुणे
7 नवम्बर 2016 रात्रि 9.40 बजे
☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆ सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय ☆ संपादक– हम लोग ☆ पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆
मन का गहरा सिंधु और उसकी लहरें तो स्वयं मनुष्य की पकड़ से भी दूर है।जिसे इस गहराई का अंदाज़ा हो वह अलग दुनिया में तप करता है।यह एक तपस्वी ही सोच सकता है। अद्भुत अंकन और गहन सोच!
मन की उमड़ती- घुमड़ती लहरों की शक्ति का क्या कहना – उसकी गहराई को न कोई मशीन नाप सकती है न तोल सकती है – रचनाकार के मन की लहरों की पकड़ बेजोड़ साबित हुई – हार गई मशीनी यंत्रणा …