श्री संजय भारद्वाज
(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही गंभीर लेखन। शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं। हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )
आज इसी अंक में प्रस्तुत है श्री संजय भरद्वाज जी की कविता “ सीढ़ियों “ का अंग्रेजी अनुवाद “Stairs…” शीर्षक से । हम कैप्टन प्रवीण रघुवंशी जी के ह्रदय से आभारी हैं जिन्होंने इस कविता का अत्यंत सुन्दर भावानुवाद किया है। )
☆ संजय दृष्टि ☆ अपराजेय ☆
उसने पूछा…,
“नहीं…”
मैंने कहा…,
“फिर तुम
मुझसे लड़ोगे कैसे..?”
“…मेरा हौसला
तुम्हें दिखता है?”
मैंने पूछा…,
“नहीं…”
” फिर तुम
मुझसे बचोगे कैसे..?”
ठोंकता है ताल मनोबल
संकट भागने को
विवश होता है,
शत्रु नहीं
शत्रु का भय
अदृश्य होता है!
कृपया घर में रहें, सुरक्षित रहें।
© संजय भारद्वाज, पुणे
प्रात: 11 बजे, 13.5.2020
☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆ सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय ☆ संपादक– हम लोग ☆ पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆
मोबाइल– 9890122603
मनोबल यदि ऊँचा हो तो अच्छे से अच्छा भय डर कर रफूचक्कर हो जाता है।
आभार आदरणीय।
शत्रु के अदृश्य भय पर ही विजय निर्भर है। मनोबल सबसे बड़ा शस्त्र है।
आभार आदरणीय।