श्री संजय भारद्वाज
(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही गंभीर लेखन। शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं। हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )
आज इसी अंक में प्रस्तुत है श्री संजय भरद्वाज जी की कविता “ चुप्पियाँ“ का अंग्रेजी अनुवाद “Silence” शीर्षक से । हम कैप्टन प्रवीण रघुवंशी जी के ह्रदय से आभारी हैं जिन्होंने इस कविता का अत्यंत सुन्दर भावानुवाद किया है। )
☆ संजय दृष्टि ☆ मालामाल ☆
ऐसी ऊँची भाषा लिखकर तो हमेशा कंगाल ही रहोगे।….सुनो लेखक, मालामाल कर दूँगा, बस मेरी शर्तों पर लिखो।
लेखक ने भाषा को मालामाल कर दिया जब उसने ‘शर्त’ का विलोम शब्द ‘लेखन’ रचा।
# दो गज की दूरी, है बहुत ज़रूरी।
© संजय भारद्वाज, पुणे
रात्रि 12:47, 19.5.2020
☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆ सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय ☆ संपादक– हम लोग ☆ पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆
मोबाइल– 9890122603
शर्तों पर लिखना यानि आत्मा की आवाज को मारना। बधाई संजय जी।
प्रतिक्रिया हेतु धन्यवाद आदरणीय।
रचनाकार शर्तों पर लिखने से मालामाल होने से अपनी रचनाओं द्वारा भाषा को मालामाल कर
देता है – भाषा ही रचनाकार की धन संपत्ति है । मौलिक रचना से ही आत्म संतोष पाता ह।
जब शर्तों पर रचने लगता है, उसी क्षण से लेखक मरने लगता है। प्रतिक्रिया हेतु धन्यवाद आदरणीय।