श्री संजय भारद्वाज
(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही गंभीर लेखन। शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं। हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )
☆ संजय दृष्टि ☆ विनिमय☆
…अत्यंत निंदनीय। मैं तो सदा कहता आया हूँ कि हमारा अतीत वीभत्स था। इस प्रकार का विनिमय मनुष्यता के नाम पर धब्बा है, पूर्णत: अनैतिक है।
पहले ने दूसरे की हाँ में हाँ मिलाई। यहाँ-वहाँ से होकर बात विषय पर आई।
…अच्छा, उस पुरस्कार का क्या हुआ?
…हो जाएगा। आप अपने राज्य में हमारा ध्यान रख लीजिएगा, हमारे राज्य में हम आपका ध्यान रख लेंगे।
विषय पूरा हो चुका था। उपसंहार के लिए वर्तमान, अतीत की आलोचनाओं में जुटा था। भविष्य गढ़ा जा रहा था।
© संजय भारद्वाज, पुणे
प्रात: 7:17 बजे, 18.5.2020
☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆ सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय ☆ संपादक– हम लोग ☆ पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆
मोबाइल– 9890122603
विनिमय अत्यंत विचारोत्तेजक – इतिहास गवाह है कि अपनी कन्याओं का विवाह संधि हेतु शत्रु से करा दिया गया है । इस निंदनीय कृत्य को आज भी अपने स्वार्थ के लिए दोहराया जाता है । स्त्री को क्यों दाँव पर लगाता जाता है ? बेचारी हमेशा शिकार रही है किसी सत्ता की प्राप्ति के लिए , क्या होगा भविष्य कोई नहीं जानता ? विचार मंथन जारी है -स्त्री सम्मान के प्रति आवाज़ उठाई है रचनाकार ने , मार्मिक सत्याभभिव्यक्ति – दिक् दर्शन …. नमन
विनिमय पैसे या सामान तक तो ठीक था पर, कन्याओं को देकर राज्य की सुरक्षा सुनिश्चित करना घृणित था।सदैव से विचारणीय प्रश्न।