श्री संजय भारद्वाज
(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही गंभीर लेखन। शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं। हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )
☆ संजय दृष्टि ☆ अंतर्प्रवाह ☆
अचर हो जाता हूँ,
अमृत देखता हूँ
प्रवाह बन जाता हूँ,
जगत में विचरती देह
देह की असीम अभीप्सा,
जीवन-मरण, भय-मोह से
मुक्त जिज्ञासु अनिच्छा,
दृश्य और अदृश्य का
विपरीतगामी अंतर्प्रवाह हूँ,
स्थूल और सूक्ष्म के बीच
सोचता हूँ मैं कहाँ हूँ..!
© संजय भारद्वाज, पुणे
(रात्रि 3:33, 23.3.2020)
☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆ सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय ☆ संपादक– हम लोग ☆ पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆
मोबाइल– 9890122603
स्थूल और सूक्ष्म के बीच सोचता हूँ मैं कहाँ हूँ..! गहन विषय है। हमें मंथन करने को प्रेरित करती रचना।
स्थूल और सूक्ष्म के बीच सोचता हूँ मैं कहाँ हूँ..!
गहन चिंतन का विषय।मंथन करने को प्रेरित करती रचना।