श्री संजय भारद्वाज
(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही गंभीर लेखन। शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं। हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )
☆ संजय दृष्टि ☆ विचारणीय ☆
मैं हूँ
मेरा चित्र है;
थोड़ी प्रशंसाएँ हैं
परोक्ष, प्रत्यक्ष
भरपूर आलोचनाएँ हैं,
मैं नहीं हूँ
मेरा चित्र है;
सीमित आशंकाएँ
समुचित संभावनाएँ हैं,
मन के भावों में
अंतर कौन पैदा करता है-
मनुष्य का होना या
मनुष्य का चित्र हो जाना…?
प्रश्न विचारणीय
तो है मित्रो!
# दो गज की दूरी, है बहुत ही ज़रूरी।
© संजय भारद्वाज, पुणे
(शुक्रवार, 11 मई 2018, रात्रि 11:52 बजे)
मनुष्य का होना या मनुष्य कआ चित्र हो जाना वास्तव विचारणीय प्रश्न है। सुंदर अभिव्यक्ति।