(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही गंभीर लेखन। शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं। हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )
☆ संजय दृष्टि ☆ ज्योतिर्गमय☆
अथाह, असीम
अथक अंधेरा,
द्वादशपक्षीय
रात का डेरा,
ध्रुवीय बिंदु
सच को जानते हैं
चाँद को रात का
पहरेदार मानते हैं,
बात को समझा करो
पहरेदार से डरा करो,
पर इस पहरेदार की
टकटकी ही तो
मेरे पास है,
चाँद है सो
सूरज के लौटने
की आस है,
अवधि थोड़ी हो
अवधि अधिक हो,
सूरज की राह देखते
बीत जाती है रात,
अंधेरे के गर्भ में
प्रकाश को पंख फूटते हैं,
तमस के पैरोकार,
सुनो, रात काटना
इसे ही तो कहते हैं..!
( ध्रुवीय बिंदु पर रात और दिन लगभग छह-छह माह के होते हैं।)
# सजग रहें, स्वस्थ रहें।
© संजय भारद्वाज, पुणे
(रात्रि 3:31 बजे, 6.6.2020)
☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆ सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय ☆ संपादक– हम लोग ☆ पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆
प्रकाश को पंख टूटते हैं ……. विलक्षण!
सूरज की राह देखते रात काटना, क्योंकि अंधेरे के गर्भ में ही प्रकाश के पंख फूटते हैं-अत्युत्तम अभिव्यक्ति संजय जी।
चाँद को रात का पहरेदार मान..टकटकी लगाये प्रकाश की आस को आत्मसात कर अंधेरे के गर्भ में प्रकाश के पंखों के फूटने की कल्पना …???अनुपम!