(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही गंभीर लेखन। शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं। हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )
☆ संजय दृष्टि ☆ संवाद ☆
उधार लिए
कुछ अक्षर मैंने,
उसने जुटाए
यहाँ-वहाँ से,
शब्दों का ढांचा
खड़ा हो पाता,
वाक्य का
ताना-बाना बुन पाता,
उससे पहले
उसकी आँख से
टपकी खारी बूँद
और मेरी पलकों की
कोरों का भीगा अहसास
सब कुछ कह गया,
निःशब्द सेतु है
अब हमारे बीच,
संवाद जिस पर
चहलकदमी कर रहा है!
© संजय भारद्वाज
17.6.2013
# सजग रहें, स्वस्थ रहें।#घर में रहें। सुरक्षित रहें।
मोबाइल– 9890122603
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति
निःशब्द सेतु पर संवादों की चहलकदमी।बहुत खूब संजय जी।
निःशब्द शब्दों की सेतु पर संवादों की चहलक़दमी.सुंदर परिकल्पना! बधाई।
वाह! नि:शब्द निःशब्द सेतु है
अब हमारे बीच,
संवाद जिस पर
चहलकदमी कर रहा है!
निःशब्द सेतु है
अब हमारे बीच,
संवाद जिस पर
चहलकदमी कर रहा है!
अद्भुत कल्पना और अभिव्यक्ति की क्षमता ,सुंदर अति सुंदर।