(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही गंभीर लेखन। शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं। हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )
☆ संजय दृष्टि ☆ समझ ☆
चुकने लगता है
गांठ का धन,
अर्थ का मूल्य
समझ आने लगता है,
कम होती
साँसों के साथ
बीते जीवन का रीतापन
समझ आने लगता है..!
© संजय भारद्वाज
( सोमवार, 13 जून 2016 सुबह-10ः07 बजे)
# आपका दिन सृजनशील हो।
मोबाइल– 9890122603
अच्छी रचना
उफ!!! बीते जीवन का रीतापन !!!
जीवन की वास्तविकता का सटीक चित्रण – अर्थ पर निर्धारित है बीते दिनों के रीतेपन की समझ …..