हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि ☆ हरापन ☆ श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। ) 

( कुछ स्मृतियाँ/रचनाएँ कालजयी होती हैं। श्री संजय भारद्वाज जी ने इस रचना के प्रकाशन को स्मृतियों में संजो कर रखा है।आभार)

☆ संजय दृष्टि  ☆ हरापन ☆

  (‘ई- अभिव्यक्ति’ में 25 जुलाई 2019 को दैनिक ‘संजय दृष्टि’ के अंतर्गत प्रकाशित पहली रचना)

जी डी पी का बढ़ना

और वृक्ष का कटना

समानुपाती होता है;

“जी डी पी एंड ट्री कटिंग आर

डायरेक्टली प्रपोर्शिएनेट

टू ईच अदर-”

वर्तमान अर्थशास्त्र पढ़ा रहा था..,

‘संजय दृष्टि’ देख रही थी-

सेंसेक्स के साँड़

का डुंकारना,

काँक्रीट के गुबार से दबी

निर्वसन धरा का सिसकना,

 

हवा, पानी, छाँव के लिए

प्राणियों का तरसना-भटकना

और भूख से बिलबिलाता

जी डी पी का

आरोही आलेख लिए बैठा

अर्थशास्त्रियों का समूह..!

हताशा के इन क्षणों में

कवि के भीतर का हरापन

सुझाता है एक हल-

जी डी पी और वृक्ष की हत्या

विरोधानुपाती होते हैं;

“जी डी पी एंड ट्री कटिंग आर

इनवरसली प्रपोर्शिएनेट

टू ईच अदर-”

भविष्य का मनुष्य

गढ़ रहा है..!

©  संजय भारद्वाज

# आपका दिन सृजनशील हो।

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603