श्री संजय भारद्वाज
(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही गंभीर लेखन। शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं। हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )
☆ संजय दृष्टि ☆ असंभव ☆
उसका समय
आया नहीं
पर चलो
कुछ छल करें,
छिप जाओ तुम
तुम्हारी एवज़ में
उसके प्राण हरें,
गलती पकड़ी जाएगी
तब देखी जाएगी,
तब तक तुम्हारी
जीवन-नैया भी
खेई जाएगी,
मेरे नकार से
तमतमा गया,
क्रोध के साथ
अचरज आ गया,
जीवन भर
सिद्धांतों पर
चलता रहा,
छल को पास
फटकने न दिया,
अब मृत्यु से
रक्षा के लिए
सिद्धांतों से समझौता
संभव नहीं,
काल!
एक नहीं
अनेक बार
अकाल हरो
पर जीवन से
छल करुँ,
संभव नहीं!
© संजय भारद्वाज
( 3 अगस्त 2018, मध्याह्न)
#आपका दिन सार्थक हो।
☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆ सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय ☆ संपादक– हम लोग ☆ पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆
मोबाइल– 9890122603
रचनाकार अपनी अंतरात्मा की आवाज़ सुनता है – वह सिद्धांतवादी है, छल-कपट से काल को भी फँसा नहीं सकता और क्यों थोड़ा -सा अधिक जीने के लिए ? …असंभव …