श्री संजय भारद्वाज
(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही गंभीर लेखन। शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं। हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )
☆ संजय दृष्टि ☆ खोज ☆
ढूँढ़ो, तलाशो,
अपना पता लगाओ,
ग्लोब में तुम जहाँ हो
एक बिंदु लगाकर दिखाओ,
अस्तित्व की प्यास जगी
खोज में ऊहापोह बढ़ी,
कौन बिंदु है, कौन सिंधु है..?
ग्लोब में वह एक बिंदु है या
ग्लोब उसके भीतर एक बिंदु है..?
रात्रि 10:11बजे, दि. 25 नवंबर 2015
☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆ सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय ☆ संपादक– हम लोग ☆ पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆
मोबाइल– 9890122603
ग्लोब में अपनी स्थिति एक बिंदु के समान ही है।
जिस दिन मनुष्य अपने भीतर ग्लोब को बिंदु के रूप में देख पाएगा उस दिन से वह समग्र सृष्टि के लिए जीवन जीएगा।और अगर वह स्वयं को ग्लोब पर बिन्दु के रूप में देखेगा तो केवल अपनी उन्नति और स्वार्थ की पूर्ति के लिए जीता रहेगा।गहन दर्शन है। साथ ही अपना अपना दृष्टिकोण।