श्री संजय भारद्वाज
(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही गंभीर लेखन। शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं। हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )
☆ संजय दृष्टि ☆ चुप्पियाँ..(40) ☆
भीतर का कोलाहल
धीरे-धीरे बढ़ा,
….और बढ़ा,
और अधिक बढ़ा,
चरम पर पहुँचा
और प्रसूत हुई
…………चुप्पी!
(प्रकाशनाधीन कवितासंग्रह ‘चुप्पियाँ’ से।)
© संजय भारद्वाज
प्रात: 8:04. 17.10.2018
☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆ सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय ☆ संपादक– हम लोग ☆ पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆
??????…और यह चुप्पी अद्भुत व्यक्त कर गई….☘️?☘️
मस्तिष्क के भीतर के कोलाहल के शांत होते ही, नवीन सृजन के लिए प्रस्तुत हो गया।बहुत खूब।