श्री संजय भारद्वाज
(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही गंभीर लेखन। शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं। हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )
☆ संजय दृष्टि ☆ ‘है’ और *’था’..(2) ☆
‘है’ और ‘था’,
देखें तो
सम्बंधों से साँसों तक
हर जगह अहम खड़ा है,
‘है’ और ‘था’,
सोचें तो
मुनादी करते
समय सबसे बड़ा है!
# हर पल निर्मल हो
© संजय भारद्वाज
(रात्रि 3:34 बजे, 22 मई 2019)
☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆ सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय ☆ संपादक– हम लोग ☆ पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆
मोबाइल– 9890122603
बरसों बाद मुनादी का यथोचित प्रयोग पढ़कर मन को प्रसन्नता हुई , है और था स्पष्ट हुआ – ” समय सबसे बड़ा है ”
हर पल निर्मल हो -तथास्तु ……..
सच में! तभी तो कहा गया है समय बड़ा बलवान… है और था के मध्य अहम कड़ी !!
यद्यपि मनुष्य जिंदगी भर अपने अहम् को लेकर जीता है पर, उसके अहम् पर भु भारी समय है।
समय सबसे बड़ा है, इसके आगे तो सभी को झुकना ही पड़ता है।