श्री संजय भारद्वाज
(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही गंभीर लेखन। शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं। हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )
☆ संजय दृष्टि – अनुवादक ☆
हर बार परिश्रम किया है
मूल के निकट पहुँचा है
मेरी रचनाओं का अनुवादक,
इस बार जीवट का परिचय दिया है
मेरे मौन का उसने अनुवाद किया है,
पाठक ने जितनी बार पढ़ा है
उतनी बार नया अर्थ मिला है,
पता नहीं
उसका अनुवाद बहुआयामी है
या मेरा मौन सर्वव्यापी है…!
© संजय भारद्वाज
प्रात: 10.40 बजे, 19.01.2020
☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆ सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय ☆ संपादक– हम लोग ☆ पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆
9890122603
जीवन में कुछ व्यक्ति ऐसे होते हैं जिनका मौन भी मुखरित हो उठता है , प्रभावशाली लेखन अनुवादक के रूप में भी अपनी ऐसी छाप छोड़ता है कि कई अर्थ प्रदान करने की शक्ति प्रदान करता है , मैं जितनी बार आपकी रचना पढ़ती हूँ, हर बार नया अर्थ पाती हूँ , इसे माँ सरस्वती का वरदान मानती हूँ , आप पर स्वयं माता की अनुकंपा की अनुभूति से आनंद की प्राप्ति होती है , अभिवादन ….
आपने सत्य कहा। सृजन तो वही होगा जो वागीश्वरी को इच्छित होगा। रचनाकार तो माध्यम भर होता है। विस्तृत प्रतिक्रिया हेतु हृदय से आभार।
मौन की सर्वव्यापकता उसके पाठकों को विभिन्न अर्थ प्रदान करती है।कमाल अनुवादक का भी है जिसके अनुवाद ने उसे और वृहत आयाम प्रदान किये हैं।दोनों ही बधाई के पात्र हैं।
विस्तृत प्रतिक्रिया हेतु हृदय से आभार आदरणीय।