श्री संजय भारद्वाज 

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

निठल्ला चिंतन ??

☆ संजय दृष्टि – हरित  ☆

 

हरा रहने के लिए जड़ों से जुड़ा होना आवश्यक है। जड़ें धरती के भीतर पोषित होती हैं। नश्वर संसार की आभासी उपलब्धियों से लम्बाई बढ़ती है। बढ़ती लम्बाई, जड़ों से दूरी भी बढ़ाती है। समय साक्षी है कि धन, संपदा, अधिकार या मान-सम्मान मिलने के बाद भी जो धरती से जुड़ा रहा, वही ऊँचा हुआ, वही हरा रहा।

 

©  संजय भारद्वाज

(सोमवार 25 फरवरी 2019, प्रातः 7:11 बजे)

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

9890122603

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈
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माया कटारा

जड़ें ज़मीं से जुड़ी रहती हैं अतः हरियाली को प्रश्रय देती हैं, सारे रिश्ते -नाते भी तभी पनपते हैं जब अपनी जड़ों से जुड़े रहते हैं – सत्य कथन ……..