श्री संजय भारद्वाज
(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही गंभीर लेखन। शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं। हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )
☆ संजय दृष्टि – मातृरेखा ☆
उसके विश्वास के आगे
मेरी उम्र की रेखा
बचपन पर ठहरी रहती है,
मेरे बीमार पड़ने पर
‘बेटे को नज़र लग गई’
जब मेरी माँ कहती है!
© संजय भारद्वाज
☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆ सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय ☆ संपादक– हम लोग ☆ पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆
9890122603
बच्चा माँ के लिए सदैव बच्चा ही रहता है।उसके लिए शुभ कामना करना व दुआ माँगना वो अंतिम क्षण तक करती है।
हर माँ को अपना बच्चा सुंदर लगता है , उसके बीमार पड़ने पर माँ को लगता है कि उसे नज़र लग गई है ,स्वाभाविक है । वैसे भी बच्चा कितना ही बड़ा हो जाए , माँ के लिए तो वह बच्चा ही होता है ……..
आह! बचपन और माँ इनका संबंध और स्मृति सी अद्भुत है।माँ जैसी कोई नहीं