श्री संजय भारद्वाज
(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही गंभीर लेखन। शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं। हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )
संजय दृष्टि – समानता
यह अनपढ़,
वह कथित लिखी पढ़ी,
यह निरक्षर,
वह अक्षरों की समझवाली,
यह नीचे जमीन पर,
वह बैठी कुर्सी पर,
यह एक स्त्री,
वह एक स्त्री,
इसकी आँखों से
शराबी पति से मिली पिटाई
नदिया-सी प्रवाहित होती,
उसकी आँखों में
‘एटिकेटेड’ पति की
अपमानस्पद झिड़की,
की बूंद बूंद एकत्रित होती,
दोनों ने एक दूसरे को देखा,
संवेदना को
एक ही धरातल पर अनुभव किया,
बीज-सा पनपा मौन का अनुवाद
और अब, उनके बीच वटवृक्ष-सा
फैला पड़ा था मुख्य संवाद!
© संजय भारद्वाज
☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆ सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय ☆ संपादक– हम लोग ☆ पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆
9890122603
संवेदनाओं की समानता होती है विवाहित स्त्रियों में , पति का स्नेह- सम्मान पाने की सुप्त आकांक्षा एक ही धरातल पर लाकर खड़ा कर देती है , काश ! सभी
पतियों को इसका एहसास होता – गृहस्थ जीवन की सफलता के रहस्य को उजागर किया है संवेदनशील रचनाकार ने …… अभिवादन
स्त्रियों की पीड़ा व दर्द समान ही होता है इसीलिए उनमें संवाद की स्थिति मुखर हो जाती है। संवेदनशील अभिव्यक्ति।