श्री संजय भारद्वाज
(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही गंभीर लेखन। शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं। हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )
(26 नवंबर 2019 को प्रकाशित >> ☆ संजय दृष्टि – शब्दयुद्ध- आतंक के विरुद्ध ☆ अपने आप में विशिष्ट है। ई-अभिव्यक्ति परिवार के सभी सम्माननीय लेखकगण / पाठकगण श्री संजय भारद्वाज जी एवं श्रीमती सुधा भारद्वाज जी के इस महायज्ञ में अपने आप को समर्पित पाते हैं। मेरा आप सबसे करबद्ध निवेदन है कि इस महायज्ञ में सब अपनी सार्थक भूमिका निभाएं और यही हमारा दायित्व भी है। – हेमन्त बावनकर
श्री संजय भरद्वाज जी के ही शब्दों में – “आम आदमी की अदम्य जिजीविषा को समर्पित यह कविता *’शब्दयुद्ध- आतंक के विरुद्ध’* प्रदर्शनी और अभियान में चर्चित रही। विनम्रता से आप सबके साथ साझा कर रहा हूँ। यदि आप किसी महाविद्यालय/ कार्यालय/ सोसायटी/ क्लब/ बड़े समूह के लिए इसे आयोजित करना चाहें तो आतंक के विरुद्ध जन -जागरण के इस अभियान में आपका स्वागत है। “
संजय दृष्टि – 26/11 विशेष – शब्दयुद्ध-आतंक के विरुद्ध
सर्वप्रथम 26/11 और देश भर में अलग-अलग आतंकी घटनाओं में प्राण गंवाने वाले आम आदमी और आतंकियों से मुकाबला करते हुए बलिदान देनेवाले सुरक्षाकर्मियों की स्मृति को साष्टांग नमन।
26/11 को मुंबई पर हुए आतंकी हमले के बाद संजय भारद्वाज एवं सुधा भारद्वाज द्वारा शब्दयुद्ध-आतंक के विरुद्ध अभियान आरम्भ किया गया। 13 वर्ष से यह अभियान अनवरत जारी है।
शब्दयुद्ध-आतंक के विरुद्ध में सम्मिलित इस रचना ‘यह आदमी मरता क्यों नहीं है’ का जन्म 26 से 28 नवम्बर 2008 के बीच कभी हुआ था। सामान्य आदमी की असामान्य जिजीविषा को समर्पित इस रचना को पाठकों और श्रोताओं ने अपूर्व समर्थन दिया।
आम आदमी के इसी अदम्य साहस को समर्पित है शब्दयुद्ध-आतंक के विरुद्ध अभियान।
यह आदमी मरता क्यों नहीं है?
? नागरिकों की रक्षा के लिए आतंकियों से लोहा लेते हुए शहीद हुए सशस्त्र बलों के सैनिकों और आतंकी वारदातों में प्राण गंवाने वाले नागरिकों को श्रद्धांजलि?
यू-ट्यूब लिंक >> यह आदमी मरता क्यों नहीं है?
ई-अभिव्यक्ति में नवंबर 2019 को प्रकाशित कविता का लिंक >>यह आदमी मरता क्यों नहीं है?
हार क़ुबूल करता क्यों नहीं है,
यह आदमी मरता क्यों नहीं है?
कई बार धमाकों से उड़ाया जाता है,
गोलीबारी से
परखच्चों में बदल दिया जाता है,
ट्रेन की छतों से खींचकर
नीचे पटक दिया जाता है,
अमीरज़ादों की ‘ड्रंकन ड्राइविंग’
के जश्न में कुचल दिया जाता है,
कभी दंगों की आग में
जलाकर ख़ाक कर दिया जाता है,
कभी बाढ़ राहत के नाम पर
ठोकर दर ठोकर
कत्ल कर दिया जाता है,
कभी थाने में उल्टा लटका कर
दम निकलने तक
बेदम पीटा जाता है,
कभी बराबरी की ज़ुर्रत में
घोड़े के पीछे बांधकर खींचा जाता है,
सारी ताकतें चुक गईं,
मारते-मारते खुद थक गईं,
न अमरता ढोता न कोई आत्मा है,
न ईश्वर, न अश्वत्थामा है,
फिर भी जाने इसमें क्या भरा है,
हज़ारों साल से सामने खड़ा है,
मर-मर के जी जाता है,
सूखी ज़मीन से
अंकुर-सा उग आता है,
ख़त्म हो जाने से डरता क्यों नहीं है,
यह आदमी मरता क्यों नहीं है..?
© संजय भारद्वाज
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈
आम आदमी मरता इस लिए नहीं,कर्मों कि उसका सर्वभाव दूब अथवा मोथा घास जैसा है।आदमी नहीं मरता बस उसकी इंसानियत मर जाती है कवि महोदय की इस रचना धर्मिता के योग्य में खुद को पा रहा हूं फिर भी अभिनंदन अभिवादन के साथ मेरी बधाई बहुत बहुत बधाई। सूबेदार पाण्डेय कवि आत्मानंद जमसार सिंधोरा बाजार वाराणसी पिन कोड 221208
दूरभाष 6387407266
बहुत ही सुन्दर रचना, दिल को झंझोड़ने वाली अभिव्यक्ति है, बधाई सर
Awesome poem sir