श्री संजय भारद्वाज
(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही गंभीर लेखन। शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं। हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )
सभी मित्रों को विश्व हिन्दी दिवस की शुभकामनाएँ।
साथ ही यह आकलन करने का अनुरोध कि निजी स्तर पर अपने जीवन में हम हिन्दी / भारतीय भाषाओं को कितना स्थान देते हैं?
135 करोड़ का देश अपने आप में भूमंडल है। यह भूमंडल, शेष भूमंडल को परिवर्तित करने की क्षमता रखता है। परिवर्तन की कुँजी इकाई के हाथ में है। हम सब इसकी इकाई हैं।…विचार कीजिएगा।
संजय भारद्वाज
अध्यक्ष, हिन्दी आंदोलन परिवार
संजय दृष्टि – सृजन
कठिन परीक्षाएँ सिर पर हैं,
तुम्हें कभी तैयारी करते नहीं देखा..?
समस्या क्रमांक दो (क) के
तीसरे उपप्रश्न ने पूछा,
जटिल प्रश्नपत्र बने जीवन को
सांगोपांग निहारा,
पारंपरिक उत्तरों को
निकासी का द्वार दिखाया,
कलम स्याही में डुबोई
और मैं हँस पड़ा…!
© संजय भारद्वाज
प्रात: 9:10 बजे, गुडी पाडवा, संवत 2076
संजयउवाच@डाटामेल.भारत