श्री संजय भारद्वाज
(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही गंभीर लेखन। शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं। हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )
प्रत्येक बुधवार और रविवार के सिवा प्रतिदिन श्री संजय भारद्वाज जी के विचारणीय आलेख एकात्मता के वैदिक अनुबंध : संदर्भ – उत्सव, मेला और तीर्थयात्रा श्रृंखलाबद्ध देने का मानस है। कृपया आत्मसात कीजिये।
संजय दृष्टि – एकात्मता के वैदिक अनुबंध : संदर्भ- उत्सव, मेला और तीर्थयात्रा भाग – 41
काँवड़ यात्रा-
काँवड़ यात्रा, संख्या की दृष्टि से विश्व की सबसे बड़ी यात्रा मानी जाती है। सावन की झमाझम में विशेषकर उत्तर भारत में लाखों काँवड़िये अपने-अपने नगर से काँवड़ में गंगाजल भरने पदयात्रा पर निकलते हैं। यात्रा की विशेषता है कि इसमें काँवड़ ज़मीन पर नहीं रखी जाती। यात्रा की पद्धति के आधार पर इसे सामान्य, डाक, खड़ी या दंडी काँवड़ में विभाजित किया जाता है। दंडी काँवड़ में तो यात्री धरती पर पेट के बल दंडवत करते हुए गंगा जी से शिवधाम तक यात्रा पूरी करता है।
शिव अखंड ऊर्जा का चैतन्य स्वरूप हैं। बैद्यनाथ धाम हो, हरिद्वार हो, नीलकंठेश्वर हो, पूरेश्वर या हर शहर के हर मोहल्ले में स्थित महादेव मंदिर, काँवड़ में भरकर लाये जल से श्रावण मास की चतुर्दशी को शिव का अभिषेक होता है।
जाति, वर्ण से परे काँवड़ियों को शिवजी के गण की दृष्टि से देखा जाता है। जहाँ देखो, वहाँ शिव के गण, जिसे देखो, वह शिव का गण.., एकात्मता को यूँ प्रत्यक्ष परिभाषित करती है वैदिक संस्कृति।
वारी यात्रा-
पंढरपुर महाराष्ट्र का आदितीर्थ है। श्रीक्षेत्र आलंदी से ज्ञानेश्वर महाराज की चरणपादुकाएँ एवं श्रीक्षेत्र देहू से तुकाराम महाराज की चरणपादुकाएँ पालकी में लेकर पंढरपुर के विठोबा के दर्शन करने जाना महाराष्ट्र की सबसे बड़ी तीर्थयात्रा या वारी है। 260 किमी. की यह यात्रा ज्येष्ठ कृष्ण सप्तमी से आरंभ होती है। लाखों की संख्या में श्रद्धालु इसमें सहभागी होते हैं।
वारी में राम-कृष्ण-हरि का सामूहिक संकीर्तन होता है। राम याने रमनेवाला-हृदय में आदर्श स्थापित करनेवाला, कृष्ण याने सद्गुरु- अपनी ओर खींचनेवाला और हरि याने भौतिकता का हरण करनेवाला।
राम-कृष्ण-हरि का सुमिरन सम्यकता एवं एकात्मता का अद्भुत भाव जगाता है। भाव ऐसा कि हर यात्री अपने सहयात्री को धन्य मान उसके चरणों में शीश नवाता है। सहयात्री भी साथी के पैरों में माथा टेक देता है।
वारी करनेवाला वारकरी, कम से कम भौतिक आवश्यकताओं के साथ जीता है। वारी आधुनिक भौतिकता के सामने खड़ी सनातन आध्यात्मिकता एवं एकात्मता है।
क्रमश: ….
© संजय भारद्वाज
अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆ सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय ☆ संपादक– हम लोग ☆ पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆
संजयउवाच@डाटामेल.भारत
बहुत सुंदर जानकारी
काॅंवड़ यात्रा और वारी यात्रा का सजीव चित्रण करती हुआ आलेख।