श्री संजय भारद्वाज
(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही गंभीर लेखन। शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं। हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )
प्रत्येक बुधवार और रविवार के सिवा प्रतिदिन श्री संजय भारद्वाज जी के विचारणीय आलेख एकात्मता के वैदिक अनुबंध : संदर्भ – उत्सव, मेला और तीर्थयात्रा श्रृंखलाबद्ध देने का मानस है। कृपया आत्मसात कीजिये।
संजय दृष्टि – एकात्मता के वैदिक अनुबंध : संदर्भ- उत्सव, मेला और तीर्थयात्रा भाग – 43
कैलाश-मानसरोवर-
पावन कैलाश पर्वत एवं मानसरोवर तिब्बत में स्थित हैं। जून से सितम्बर तक चलने वाली इस परिक्रमा में लगभग दो माह का समय लगता है। यह यात्रा दो मार्गों, उत्तराखंड के लिपुलेख दर्रा और सिक्किम के नाथु-ला दर्रा के मार्ग से की जा सकती है। इस क्षेत्र में मीठे पानी की विश्व में सर्वाधिक ऊँचाई पर स्थित मानसरोवर झील है। प्रकृति का अद्भुत संतुलन यह कि खारे पानी वाला राक्षस ताल भी इसी क्षेत्र में है।
कैलाश पर्वत, महादेव का निवासस्थान है। यहाँ आँखों दिखते अनेक चमत्कार हैं। इसके दोनों ओर के पर्वत एकदम कोरे और मध्य में स्थित पूर्णत: हिमाच्छादित दिव्य कैलाश! उपलब्ध रेकॉर्ड के अनुसार इस पर्वत पर आजतक कोई चढ़ नहीं पाया। विज्ञान इस क्षेत्र को अति रेडियोएक्टिव मानता है। इस रेडिएशन के कारण मनुष्य का यहाँ ठहर पाना संभव नहीं होता।
कैलाश पर्वत की चार दिशाओं से चार नदियाँ ब्रह्मपुत्र, सिंधु, सतलुज, करनाली का उद्गम है। इस आलेख के लेखक को कैलाश-मानसरोवर यात्रा पर एक डॉक्युमेंट्री फिल्म का लेखन और निर्देशन करने का सौभाग्य मिला है।
पशुपतिनाथ-
पशुपतिनाथ मंदिर, नेपाल की राजधानी काठमांडू में स्थित है। इसे ईसा पूर्व तीसरी सदी का माना जाता है। तेरहवीं सदी में इसका पुनर्निर्माण हुआ था। केदारनाथ जी में जैसे महिष के पृष्ठभाग के रूप में महादेव पूजे जाते हैं, वैसे ही महिष के मुखरूप में यहाँ भगवान का विग्रह है। एकात्म परंपरा ऐसी कि यहाँ मुख्य पुजारी दक्षिण भारत से होते हैं। यद्यपि चीन समर्थक वामपंथी शासकों के आने के बाद कुछ समय पहले यह व्यवस्था समाप्त कर दी गई।
क्रमश: ….
© संजय भारद्वाज
अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆ सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय ☆ संपादक– हम लोग ☆ पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆
संजयउवाच@डाटामेल.भारत
विज्ञान, अध्यात्म से जुड़ी महत्त्वपूर्ण जानकारी! 🌼🌸
अच्छी जानकारी