श्री संजय भारद्वाज
(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही गंभीर लेखन। शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं। हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )
☆ संजय दृष्टि – आमंत्रित ☆
समारोह के आमंत्रितों की सूची बनकर तैयार थी। जुगाड़ लगाकर प्रदेश के एक राज्यमंत्री को बुला लिया था। शहर के प्रमुख अखबार के संपादक और एक चैनल के एक्जिक्यूटिव एडिटर थे। सूची में कलेक्टर थे, डीएसपी थे। कई बड़े उद्योगपति, जाने-माने वकील थे। अभिनेत्री को तो बाकायदा पेमेंट देकर ‘सेलिब्रिटी इनवाइटी’ बनाया था।
‘वे सब लोग आ रहे हैं जिनके दम पर दुनिया चलती है..’ लोअर डिवीजन की क्लर्की से रिटायर हुए अपने वयोवृद्ध पिता को लिस्ट दिखाते हुए इतरा कर साहब ने कहा।
‘ देखूँ ज़रा.., पर इसमें ईश्वर का नाम तो दिखता ही नहीं कहीं जिसके दम पर..,’ पिता ने चश्मे की गहरी नजर से एक-एक शब्द ध्यान से पढ़ते हुए अधूरा वाक्य कहकर अपनी बात पूरी की थी।
© संजय भारद्वाज, पुणे
☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆ सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय ☆ संपादक– हम लोग ☆ पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆
मोबाइल– 9890122603