श्री संजय भारद्वाज
(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही गंभीर लेखन। शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं। हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )
प्रत्येक बुधवार और रविवार के सिवा प्रतिदिन श्री संजय भारद्वाज जी के विचारणीय आलेख एकात्मता के वैदिक अनुबंध : संदर्भ – उत्सव, मेला और तीर्थयात्रा श्रृंखलाबद्ध देने का मानस है। कृपया आत्मसात कीजिये।
संजय दृष्टि – एकात्मता के वैदिक अनुबंध : संदर्भ- उत्सव, मेला और तीर्थयात्रा भाग – 44
अन्य-
ऊपर अति संक्षेप में कुछ ही तीर्थस्थानों की जानकारी दी जा सकी है। इन प्रतिनिधि तीर्थों के अलावा भी सनातन दृष्टि हर पग पर और हर रजकण में तीर्थ देखती है। इन तीर्थों में हरिद्वार, ऋषिकेश, जोशीमठ, गोमुख, हेमकुंड, नैना देवी, शुकताल, शाकंभरी, कुरुक्षेत्र, गढ़मुक्तेश्वर, मिथिला, सोनपुर, गया, बैद्यनाथ, वासुकिनाथ, गंगासागर, कामाख्या पीठ, नरसिंहपुर, कोल्हापुर, नागेश, परली वैजनाथ, आलंदी, देहू, नासिक, घृणेश्वर, शिरडी, त्र्यंबकेश्वर, महिसागर, सोमनाथ, अंबाजी, श्रीनाथद्वारा, एकलिंग जी, ओंकारेश्वर, महाकालेश्वर, करौली, अमरकंटक, श्रीशैलम, श्रीकूर्मम, भद्राचलम, पलक्का नृसिंह, तिरुवत्तियूर, तिरुक्कुलूकुंद्रम, महाबलीपुरम, कांची, कुंभकोणम, जनार्दन, गुरुवायूर, मीनाक्षी मंदिर आदि सम्मिलित हैं।
उनाकोटी हिल्स, त्रिपुरा में देवी-देवताओं की एक करोड़ से एक कम प्रतिमाएँ हैं। इस संख्या का कारण देने के लिए एक पौराणिक कथा भी प्रचलन में है। इसी प्रकार ‘न भूतो न भविष्यति’ का अनुपम उदाहरण है जम्मू का रघुनाथ मंदिर। इस मंदिर में 33 करोड़ देवी-देवताओं के नाम पढ़े जा सकते हैं। तथापि कुल मिलाकर यह सूची भी तीर्थों की संख्या का अत्यल्प अंश ही है।
सच तो यह है कि जहाँ मानसतीर्थ की संकल्पना हो, वहाँ कितने स्थावर तीर्थों की गणना की जा सकती है? यह ‘हरि अनंत, हरिकथा अनंता’ जैसी असीम यात्रा है।
क्रमश: ….
© संजय भारद्वाज
अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆ सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय ☆ संपादक– हम लोग ☆ पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆
संजयउवाच@डाटामेल.भारत
सच है, तीर्थों की गणना करना ‘हरि अनंत हरि कथा अनंता’ जैसी असीम यात्रा ही है जो एकात्म भाव को दर्शाती हैं।
अगणित तीर्थ स्थान, अनंत मानसतीर्थ अकल्पनीय, अतुलनीय
सत्य कथन- हरि अनंत हरि कथा अनंता ——अभिवादन
भारत दर्शन का नक्शा आलेख में मिल गया। धन्यवाद!💐💐