श्री संजय भारद्वाज
(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही गंभीर लेखन। शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं। हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )
संजय दृष्टि – लघुकथा – कथासरित्सागर
बचपन में पिता ने उसे ‘कथासरित्सागर’ की सजिल्द प्रति लाकर दी थी। छोटी उम्र, मोटी किताब। हर कहानी उत्कंठा बढ़ाती पर बालमन के किसी कोने में एक भय भी होता कि एक दिन इस किताब के सारे पृष्ठ पढ़ लिये जाएँगे, कहानियाँ भी समाप्त हो जाएँगी…, तब कैसे पढ़ेगा कोई नयी कहानी?
बीतते समय ने उसके हिस्से की कहानी भी लिखनी शुरू कर दी। भीतर जाने क्या जगा कि वह भी लिखने लगा कहानियाँ। सरित्सागर के खंड पर खंड समाप्त होते रहे पर कहानियाँ बनी रहीं।
अब तो उसकी कहानी भी पटाक्षेप तक आ पहुँची है। यहाँ तक आते-आते उसने एक बात और जानी कि मूल कहानियाँ तो गिनी-चुनी ही हैं। वे ही दोहराई जाती हैं, बस उनके पात्र बदलते रहते हैं। जादू यह कि हर पात्र को अपनी कहानी नयी लगती है।
कथासरित्सागर के पृष्ठ समाप्त होने का भय अब उसके मन से जाता रहा।
© संजय भारद्वाज
अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय ☆संपादक– हम लोग ☆पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆
संजयउवाच@डाटामेल.भारत
कथाकार ने कथा-कहानी के बारे मे यह रहस्योद्घाटन किया है कि मूलतया
इनी-गिनी कथाएँ ही होती हैं , केवल पात्र बदल दिए जाते हैं और हर कथाकार यह सोचकर खुश होता है कि उसने कुछ नया रचा है…..अस्तु ..बधाई कथाकार