श्री संजय भारद्वाज
(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही गंभीर लेखन। शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं। हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )
संजय दृष्टि – राष्ट्रीय एकात्मता में लोक की भूमिका – भाग – 7
सहभागिता और साहचर्य का आरंभ बच्चे के जन्म से ही होता है। संतान को लेकर प्रसूता सबसे पहले कुआँ पूजन के लिए घर से निकलती है। पहला पूजा जलदेवता के स्रोत की। शरीर का पचहत्तर प्रतिशत जल से ही बना है। वह अपने दूध की धार कुएँ में छोड़ती है। प्रकृति से प्रार्थना करती है कि जैसे मेरा दूध पीकर मेरा बेटा/ बेटी स्वस्थ रहें, उसी भाव से मैं अपना दूध कुएँ के जल में डालती हूँ जिससे मेरा गाँव स्वस्थ रहे।
जन्म से आरंभ ‘सर्वजन हिताय, सर्वजन सुखाय’ का यह भाव, आजन्म चलता है। सधवा स्त्रियों द्वारा किया जानेवाला करवा चौथ का व्रत अकेली स्त्रियों द्वारा भी बड़ी संख्या में घर-परिवार- समाज के लिए भी किया जाता है। यह व्रत करनेवाली ऐसी ही एक निराधार वृद्धा से एक सर्वेक्षक ने जब कारण जानना चाहा तो उसने कहा कि गाँवराम मेरा पालन-पोषण करता है, सो उसके लिए करती हूँ। मैं न रहूँ तब भी मेरा गाँवराम खुश रहे। अद्भुत दर्शन है ये।
इस घटना में गाँवराम को किसी व्यक्ति का नाम समझने वालों को पता हो कि गाँव से अर्थात पूरे समाज में ईश्वरीय तत्व देखने-जोड़ने की भावना के चलते गाँव को गाँवराम कहा गया। इसी श्रद्धाभाव के चलते बच्चे का नाम भी भी ‘राम’ नहीं अपितु ‘सियाराम’, ‘श्रीराम’, ‘रामजी’ रखा जाता है। ईश्वर के पर्यायवाची या देवी-देवताओं के नाम पर बच्चों का नामकरण लोक में पहली पसंद रहा।
क्रमशः…
© संजय भारद्वाज
अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय ☆संपादक– हम लोग ☆पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆
संजयउवाच@डाटामेल.भारत