श्री संजय भारद्वाज
(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही गंभीर लेखन। शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं। हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )
संजय दृष्टि – पर्यावरण विमर्श…(6) – हरित शहर
काट दिये गए हैं
पेड़ों के मुंड,
छील दी गई है
पूरी की पूरी छाल,
धरती को
पच्चीस-पचास मीटर
घनी छाँव से ढकनेवाले,
अब स्वयं खड़े हैं
निर्वस्त्र और विवश,
इनकी असहाय देह पर
घातक रंगों से
पोती जा रही हैं
रंग- बिरंगी पत्तियाँ,
उकेरे जा रहे हैं
कई तरह के फूल,
एल.ई.डी.की रोशनी में
प्रदर्शन के लिए रखी
अनावृत लाज पर
चस्पां हो रहे हैं स्लोगन
वृक्षारोपण और
वन महोत्सव के,
और इनके इर्द-गिर्द
फल-फूल रही है
बेख़ौफ़ ब्यूरोक्रेटिक घास,
सारा माज़रा
आशंका मिश्रित भय से
निहार रहे हैं
जवानी की दहलीज़ पर खड़े
आसपास के कच्चे पेड़,
मैं लिखता हूँ ख़त
आयोजकों को-
माफ कीजियेगा,
‘हरित शहर’ अभियान के
उद्घाटन के लिए
नहीं आ पाऊँगा।
© संजय भारद्वाज
अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार ☆सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय ☆संपादक– हम लोग ☆पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆
संजयउवाच@डाटामेल.भारत