हिन्दी साहित्य – मनन चिंतन ☆ संजय दृष्टि – सब पर भारी-अटलबिहारी ☆ श्री संजय भारद्वाज ☆

श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

 ? संजय दृष्टि – सब पर भारी-अटलबिहारी ??

भारतरत्न अटलबिहारी वाजपेयी जी की स्मृति को नमन 🙏🏻

20 फरवरी 1999 को भारत के प्रधानमंत्री के रूप में वाजपेयी जी ने बस से लाहौर की यात्रा कर इतिहास रचा था। इस दौरान चर्चा में आने के लिए पाकिस्तानी लेखिका अतिया शमशाद ने कश्मीर की एवज में अटलजी से विवाह का प्रस्ताव किया था। उक्त प्रस्ताव के संदर्भ में उन दिनों उपजी और चर्चित रही यह रचना साझा कर रहा हूँ-

बरसों का तप

दर्शकों के सिद्धांत भी टल गए

पाकिस्तानी बाला के

विवाह प्रस्ताव से

अटलजी भी हिल गए।

 

जीवन की संध्या में

ऐसा प्रस्ताव मिलना

नहीं किसी अलौकिक प्रकार से कम है

लेकिन अटल जी का व्यक्तित्व

क्या किसी चमत्कार से कम है ?

 

सोचा, प्रस्ताव पर

गौर कर लेने में क्या हर्ज है

साझा संस्कृति में

बड़प्पन दिखाना ही तो फर्ज़ है,

कवि मन की संवेदनशील आतुरता

राजनेता की टोह लेती सतर्कता

प्रस्ताव को पढ़ने लगी-

आप कुँवारे-मैं कुँवारी

आप कवि, मैं कलमनवीस

आप हिन्दुस्तानी, मैं पाकिस्तानी

क्यों न हम एक दिल हो जाएँ

बशर्त सूबा-ए-कश्मीर हमें मिल जाए !

 

उत्साह ठंडा हो गया

भावनाएँ छिटक कर दूर गिरीं

सारी उमंग चकनाचूर हुई

अनुभव को षडयंत्र की बू हुई।

माना कि जमाना बदल गया है

दहेज का चलन दोनों ओर चल गया है

पहले केवल लड़के वाले मॉंगा करते थे

अब लड़की वाले भी मॉंग रख पाते हैं

पर ये क्या; रिश्ते कि आड़ में

आप तो मोहब्बत को ही छलना चाहते हैं!

 

और मॉंगा भी तो क्या

कश्मीर…..?

वह भी अटल जी से…..?

शरीर से आत्मा मॉंगते हो

पुरोधा से आत्मबल मांगते हो

बदन से जान चाहते हो

अटल के हिंदुस्तान की आन चाहते हो?

 

मोहतरमा!

इस शख्सियत को समझी नहीं

चकरा गई हैं आप

कौवों की राजनीति में

राजहंस से टकरा गयी हैं आप।

 

दिल कितना बड़ा है

जज़बात कितने गहरे हैं

इसे समझो,

सीमाओं को तोड़ते

दिलों को जोड़ते

ज्यों सरहद की बस चलती है

नफरत की हर आंधी

जिसके आवेग से टलती है,

मोहब्बत की हवाएँ

जिसका दम भरती हैं

पूछो अपने आप से

क्या तुम्हारे दिलों पर

अटल की हुकूमत नहीं चलती है?

 

युग को शांति का

शक्तिशाली योद्धा मिला है

इस योद्धा के सम्मान में गीत गाओ,

नफरत और जंग की सड़क पर

हिन्दुस्तानी मोहब्बत और

अमन की बस आती है

इस बस में चढ़ जाओ।

बहुत हुआ

अब तो मन की कालिख धो लो

शांति और खुशहाली के सफर में

इस मसीहा के संग हो लो।

 

काश! शादी करके यहॉं बसने का

आपका खयाल चल पाता

हमें तो डर था

कहीं घर जवाई होने का

प्रस्ताव न मिल जाता।

 

प्रस्ताव मिल जाता तो

हमारा तो सब कुछ चला जाता

पर चलो तुम्हारा

तो कल सुधर जाता

यहॉं का अटल

वहां भी बड़ी शान से चल जाता।

 

सारी दुनिया आज दुखियारी है

हर नगरी अंधियारी है

अंधेरे मे चिंगारी है

सब पर जो भारी है

हमें दुख है हमारे पास

केवल एक अटलबिहारी है।

 

वैसे भी तुम्हारे हाल तो खस्ता हैं

ऐसे में अटलजी से

रिश्ता जोड़ने का खयाल अच्छा है।

वाजपेयी जी!

सौगंध है आपको

हमें छोड़ मत जाना

क्योंकि अगर आप चले जायेंगे

तो-

वेश्या-सी राजनीति

गिद्धों-से राजनेताओं

और अमावस-सी अंधेरी व्यवस्था में

दीप जलाने हम

दूसरा अटल कहॉं से लायेंगे ?

 

© संजय भारद्वाज

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

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≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈