श्री संजय भारद्वाज

(श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकते हैं। )

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

🕉️ मार्गशीष साधना🌻

आज का साधना मंत्र  – ॐ नमो भगवते वासुदेवाय

आपसे विनम्र अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

? संजय दृष्टि – लघुकथा – चाय ??

…पापा जी, ये चार-चार बार चाय पीना सेहत के लिए ठीक नहीं है। पता नहीं मम्मी ने कैसे आपकी यह आदत चलने दी? कल से एक बार सुबह और एक बार शाम को चाय मिलेगी। ठीक है…?

…हाँ बेटा ठीक है.., कहते-कहते मनोहर जी बेडसाइड टेबल पर फ्रेम में सजी गायत्री को निहारने लगे। गायत्री को भी उनका यों चार-पाँच बार चाय पीना कभी अच्छा नहीं लगता था। जब कभी उन्हें चाय की तलब उठती, उनके हाव-भाव और चेहरे से गायत्री समझ जाती। टोकती,..इतनी चाय मत पिया करो। मैं नहीं रहूँगी तो बहुत मुश्किल होगी। आज पी लो लेकिन कल से नहीं बनेगी दो से ज़्यादा बार चाय।

…पैंतालीस साल के साथ में कल कभी नहीं आया पर गायत्री को गये अभी पैंतालीस दिन भी नहीं हुए थे कि..! …तुम सच कहती थी गायत्री, देखो जो तुम नहीं कर सकी, तुम्हारी बहू ने कर दिखाया…, कहते-कहते मनोहर जी का गला भर आया। जाने क्यों उन्हें हाथ में थामी फ्रेम भी भीगी-भीगी सी लगी।

© संजय भारद्वाज 

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈
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