यात्रा संस्मरण ☆ न्यू जर्सी से डायरी… 5 ☆ श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’
पवेलियन आन व्हील
महत्वपूर्ण बातें तो कई लोग करते हैं , किताबें तथा मीडिया पर बड़ी बातों पर खूब सी सामग्री सहजता से मिल जाती है, इसलिए मैं उन छोटी और इग्नोर्ड विषयों पर चर्चा कर रहा हूं जो हम देखकर भी अनदेखा कर देते हैं। ऐसे अनेक छोटे छोटे मुद्दे हैं जो सुविधाओ तथा दूरियों के चलते भारत से भिन्नता रखते हैं, और उन्हें जानने समझने में आपकी रुचि हो सकती है। ऐसा ही एक विषय है खेलों में आम आदमी की अभिरुचि ।
सुबह घूमते हुए मैने देखा की आवासीय परिसर में ही सड़क किनारे बास्केट बाल का चेन लिंक से घिरा पक्का ग्राउंड भर नहीं है , पर्याप्त दर्शको के लिए एल्यूमिनियम का पवेलियन आन व्हील भी बनाया गया है। फोल्डिंग, फटाफट फिट स्टेडियम, इस प्रकार के चके पर चलते स्टेडियम अपने भारत में मेरे देखने में नहीं आए । इससे पता चलता है की खेलने वाले भी हैं, और उन्हें बकअप कर उत्साह बढ़ाने वाले भी हैं। समाज में व्याप्त यह जज्बा ही अंतराष्ट्रीय स्तर पर मेडल टेली में देश को ऊपर लाता है ।
हमारे देश के वर्तमान हालात के महज चंद खिलाड़ियों के विभिन्न खेलों के कैंप, टीम तो बना सकते हैं पर प्रत्येक खेल में क्रिकेट की तरह का जज्बा तभी पैदा हो सकता है जब सामाजिक प्रवृत्ति खेलने , खेलो में हिस्सेदारी की बने । यह हिस्सेदारी दर्शक की भूमिका से आयोजक प्रायोजक तक गांव शहर मोहल्लों में बने । इसके लिए ऐसे सहज पेवेलियन आन व्हील्स और मैदानो के इंफ्रा स्ट्रक्चर की आवश्यकता से आप भी सहमत होंगे।
विवेक रंजन श्रीवास्तव, न्यूजर्सी
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈